________________ सूती वस्त्र वस्त्रों में सूती वस्त्र बहुत प्रचलित था। कपास, सन, बाँस, अतसी आदि पौधों से सूत प्राप्त होता था। कपास (सेडुग) को औट कर (रूंचंत) बीज निकाल दिये जाते थे। फिर धुनकी (पीजनी) से धुनकर (पींजकर) धुनी हुई (पूनी) रूई तैयार की जाती थी। कपास, दुग्गुल और मूज (वच्चक/मुंज) के कातने का उल्लेख प्राप्त होता है। "नालघ' नामक उपकरण से सूत को भूमि पर फैला कर ताना-बुना जाता और फिर 'कड़जोगी (वस्त्र बुनने की खड्डी) से वस्त्र तैयार किया जाता था। कताई और बुनाई के अलग-अलग उद्योग होते थे। बुनकरों की शालाओं में वस्त्र बुने जाते थे। नालन्दा के बाहर स्थित एक तन्तुवायशाला में भगवान महावीर ठहरे थे। कताई-कार्य से महिलाएँ अधिक जुड़ी हुई थी। बृहत्कल्प भाष्य, पिण्ड नियुक्ति आदि में महिलाओं द्वारा सूत कातने के उल्लेख मिलते हैं। कौटिलीय अर्थशास्त्र में बताया गया है कि राज्य के कारखानों में विधवाओं, अपाहिजों, भिक्षुणियों, वृद्धाओं, राजपरिचारिकाओं एवं दासियों द्वारा सूत काता जाता था। दुकूल-वृक्ष की छाल से दुकूल वस्त्र बनाये जाते। सूती वस्त्रों में तौलिये का उत्पादन भी उल्लेखनीय है। ज्ञाताधर्मकथांग में मेघकुमार को स्नान के बाद कषाय रंग के अत्यन्त कोमल और रोयेंदार तौलिये से पौंछा जाता है। इन सब उल्लेखों से सूती वस्त्र उद्योग की विकसित अवस्था का पता चलता है। वस्त्र-निर्माण में विशिष्टता, निपुणता और विविधता तथा लोगों की सामाजिकआर्थिक दशा का अनुमान भी लगाया जा सकता है। रेशमी वस्त्र : आगम सूत्रों में वर्णित रेशमी-वस्त्रों को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं:- अहिंसक रेशम : सूती/वानस्पतिक रेशम तथा हिंसक रेशम : प्राणिज रेशम। आचारांग" में पाँच प्रकार के रेशमी वस्त्रों का उल्लेख है- पट्ट : पट्ट वृक्ष पर पले कीड़ों की लार से निर्मित - मलय : मलय देश में उत्पन्न वृक्षों के पत्तों पर पड़े कीड़ों की लार से निर्मित - अंशुक : दुकूल वृक्ष की आन्तरिक छाल से प्राप्त रेशों से निर्मित - चीनांशुक - चीन देश के रेशमी वस्त्र - देश राग : रंगे हुए रेशमी वस्त्र (126)