________________ 22. बहत्कल्पसूत्र 1.50 23. जैन, जगदीश चन्द्र (डॉ.) जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ.-459 एवं प्रज्ञापना 1.66 24. प्रश्नव्याकरण सूत्र 5.17, बृहत्कल्प में सोलह स्थान ऐसे बताये गये हैं, जहाँ श्रमण या श्रमणी वर्षा ऋतु के अलावा अधिक समय नहीं ठहर सकती है। उनमें इन आठ का समावेश हैं। शेष आठ भी वाणिज्यिक महत्व के हैं। देखें, प्रथम अध्ययन। 25. व्याख्या-प्रज्ञप्ति टीका-आ.अभयदेव 26. बृहत्कल्पभाष्य 1.1090 27. वही, 1.1089 28. जैन, दिनेन्द्र चन्द्र (डॉ) इकोनोमिक लाइफ इन एंशेंट इंडिया एज़ डेपिक्टेड इन जैन कैनोनिकल लिटरेचर, पृ. : 81-82 29. निरयावलिका 1/1 30. औपपातिक सूत्र 1 एवं उववाई सूत्र 39 31. ज्ञाताधर्मकथांग 8/47 व 9वाँ अध्ययन। 32. जैन, प्रेम सुमन (डॉ.) 'कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन', पृ. : - 67 33. सरकार, डी.सी., प्राचीन और मध्ययुग के भारत का भौगोलिक अध्ययन, पृ.-323 . 34. अवस्थी, ए.एल., प्राचीन भारत का भौगोलिक स्वरूप, पृ.-43 . 35. बोस, ए.एन., सोश्यल एंड रुरल इकोनोमी इन नार्दर्न इंडिया पृ.-213 35. आवश्यक चूर्णि 37. ज्ञाताधर्मकथांग 17/3 38. जैन, जगदीश चन्द्र (डॉ.) जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ.-466 39. उत्तराध्ययन 22वाँ अध्ययन (157)