________________ 22. भृगुकच्छ : यह नगर भी 'द्रोणमुख व्यापार केन्द्र का उत्तम उदाहरण है। यह समुद्री किनारे भी था और नर्मदा नदी के भी। स्थल मार्ग से यह जुड़ा हुआ था। यह उज्जैनी से भी व्यापारिक तौर पर जुड़ा हुआ था। वर्तमान में गुजरात में भरूच के रूप में यह पहचाना गया है। 23. द्वारवती : ज्ञाताधर्मकथांग” में इस नगर को बहुत सुन्दर और समृद्ध बताया गया है। द्वारवती में सार्थवाहों, श्रेष्ठियों और व्यापारियों द्वारा सभी प्रकार की व्यापारिक गतिविधियाँ सम्पन्न की जाती थी। उसे कुबेर की अभिकल्पना के अनुरूप बनाया गया था। वह सोने के उत्तम परकोटे और पंचरंगी मणियों से सजे कंगूरों से शोभित थी। 24. वीतिभयपट्टन : वर्तमान में इस नगर की अवस्थिति पाकिस्तान के शाहपुर जिले के 'भेर' नगर के रूप में की गई है। आवश्यक चूर्णि में इसका 'कंभकार-प्रक्षेप नाम मिलता है। यह नीचली सिंधु घाटी के जनपद सिंधुसौवीर की राजधानी था। सिंधु नदी के बायें किनारे पर स्थित होने तथा रेगिस्तान में होने से इस नगर का अलग ही व्यापारिक महत्त्व था। 25. तक्षशिला : तक्षशिला व्यापारिक केन्द्र तो था ही, एक शिक्षा केन्द्र के रूप में इसकी ख्याति थी। पूर्वोत्तर भारत के व्यापारी पश्चिम में तक्षशिला होकर जाते थे। कुवलयमालाकहा के अनुसार प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के धर्मचक्र का प्रवर्तन वहाँ हुआ था और वह उनके समवसरण से शोभित थी। तक्षशिला में द्वीप-समुद्र की भाँति असंख्यात धन-वैभव बिखरा पड़ा था। पाकिस्तान में रावलपिण्डी के निकट इसके अवशेष आज भी विद्यमान है। ___26. पुष्करावती : यहाँ भी पूर्वोत्तर भारत के व्यापारी व्यापार के लिए पहुँचते थे। तथा यहाँ के व्यापारी भी देश-विदेश में व्यापार करते थे। पुष्कलावती (कमल के फूलों का शहर) वर्तमान में पेशावर (पाकिस्तान) से 17 मील उत्तर-पूर्व में स्थित माना गया है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में फैले ये व्यापारिक केन्द्र तत्कालीन समय की आर्थिक गतिविधियों पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। डॉ. प्रेम सुमन ने 'कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन' में प्राचीन भारत के भौगोलिक विवरण और आर्थिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए अनेक तथ्य प्रस्तुत किये हैं। आगमिक आर्थिक जीवन को समझने में वे भी उपयोगी हैं। (155)