________________ 9. कांचनपुर : जैन ग्रन्थों में इसे कलिंग की राजधानी बताया गया है। ईसा की सातवीं शताब्दी से आज तक यह भुवनेश्वर (उड़ीसा की राजधानी) के नाम से जाना जाता है। यह व्यापार केन्द्र था तथा यहाँ के व्यापारी श्रीलंका व्यापार के लिए जाते थे। 10. पिहुण्ड : उत्तराध्ययन सूत्र में पिहुण्ड का उल्लेख है। यह व्यापार केन्द्र था। चम्पा का व्यापारी पालित यहाँ पहुँचा था।” यह समुद्री-किनारे बना हुआ था। इसे वर्तमान में विशाखापट्टनम (आ.प्र.) के पश्चिम में नागवती नदी के पास नगर के रूप में पहचाना गया है। 11. वाराणसी या वाणारसी : भारतीय साहित्य, संस्कृति और इतिहास में वाराणसी का महत्वपूर्ण स्थान है। यह काशी जनपद की राजधानी थी। इसे तेबीसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की जन्म भूमि होने का गौरव प्राप्त है। यह भी एक प्रतिष्ठित व्यापार-केन्द्र था। वरुणा तथा असी इन दो नदियों के बीच अवस्थित होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा। नदियों के निकटकिनारे होने से नदी जल मार्ग इससे जुड़े थे। रेशम और कलात्मक वस्तुओं के लिए यह प्रख्यात थी। उत्तरापथ का रास्ता वाराणसी होकर जाता था। 12. कौशाम्बी : यह वत्स साम्राज्य की राजधानी थी। यह नगर 'कोसम' नामक गाँव के रूप में पहचाना गया जो इलाहाबाद से 37 मील दूर दक्षिण-पश्चिम में तथा यमुना नदी के उत्तर में स्थित है। यह भी अच्छा व्यापार केन्द्र था तथा उसमें जल-परिवहन की भी भूमिका थी। 13. साकेत (अयोध्या): अयोध्या भगवान राम की जन्म-स्थली के रूप में विख्यात है। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋशभदेव की जन्म स्थली भी अयोध्या (विनीता) को माना जाता है। भगवान महावीर का भी यहाँ विचरण हुआ था। व्यापार और व्यवसाय खूब होता था। नदी जल मार्ग का भी उसमें योगदान था। यहाँ के निवासी सुसभ्य और सुसम्पन्न थे। कुछ विद्वान साकेत और अयोध्या को दो अलग-अलग स्वतन्त्र नगर मानते हैं। 14. सावत्थी (श्रावस्ती) : कुणाल राजा की इस राजधानी को 25", आर्य देशों में भी गिना गया है। इसे वर्तमान में उत्तरप्रदेश में अयोध्या के निकट राप्ती नदी के किनारे 'सहेत-महेत' नामक नगर के रूप में जाना जाता है। (153)