________________ स्थल मार्ग दोनों ही से जुड़ा हुआ था। सुवर्ण भूमि (बर्मा-म्यांमार) तक यहाँ से' माल जाता था। धनदत्त सेठ व्यापार के लिए पाटलीपुत्र से रत्नद्वीप गया था।ई.पू. पाँचवीं सदी से छठी सदी तक इस नगर का अपरिमित उत्कर्ष हुआ था। 4. मिथिला (जनकपुर) : ज्ञाताधर्मकथांग में इस नगर का वर्णन है। पास और दूर देशों के व्यापारी यहाँ व्यापार करने आते थे। व्यापार करने की राजा से अनुमति लेते थे और राजा भी उनका शुल्क माफ कर देता था। वर्तमान में नेपाल तराई में इसकी अवस्थिति मानी गई है। यह चम्पा से भी जुड़ा था। 5. वैशाली : वैशाली गणराज्य के कुण्डपुर को भगवान महावीर का जन्म स्थल माना जाता है। महाराजा चेटक, जो महावीर के नाना या मामा थे, वैशाली गणराज्य के प्रमुख थे। यह भी व्यापार का मुख्य केन्द्र था।निकट ही वाणिज्यग्राम की स्थिति से वैशाली व्यापार-केन्द्र के रूप में भी सिद्ध होता है। 6. गंभीर : साढ़े पच्चीस आर्य देशों में इसकी गणना की गई है। यह बंग की राजधानी था। प. बंगाल में ताम्रलिप्ति के रूप में इसे जाना जाता है। वर्तमान में प. बंगाल के मिदनापुर जिले के ताम्लुक के रूप में इसकी पहचान की गई है। यह सचमुच व्यापार वाणिज्य का बड़ा केन्द्र था। इसे 'द्रोणमुख' कहा जा सकता है। जहाँ से स्थल-मार्ग, नदी-मार्ग और समुद्र-मार्ग तीनों जुड़े हुए थे। अनेक देशों में यहाँ से माल का निर्यात, अनेक देशों से यहाँ माल का आयात तथा स्थानीय व्यापार यहाँ होता था। 7. दन्तपुर : वर्तमान में मिदनापुर जिले (प. बंगाल) के 'दन्तन ग्राम को दन्तपुर माना जाता है। हाथी दाँत के लिए यह प्रसिद्ध था। संभवतः इसीलिए इसका नाम दन्तपुर पड़ा हो। यहाँ का धनमित्र उसकी पत्नी की इच्छा-पूर्ति के लिए हाथी-दांत का भवन बनाना चाहता था परन्तु गैर-कानूनी कार्य के कारण उसे गिरफ्तार कर लिया गया। 8. हस्तीशीर्ष : ज्ञाताधर्मकथांग” के अनुसार इस नगर में अनेक सांयात्रिक (संयुक्त रूप से व्यापारिक यात्रा करने वाले) और नौकावणिक रहते थे। वे धनाढ्य और समर्थ थे। यहाँ के व्यापारी व्यापार के लिए कालिका द्वीप तक गये थे। कालिका द्वीप पूर्वी अफ्रीका में कहीं माना जाता है। ताम्रलिप्ति से होकर हस्तीशीर्ष का व्यापार होता था। इससे हस्तीशीर्ष का पूर्वी भारत में ताम्रलिप्ति के आसपास होने का अनुमान है। (152)