________________ ___अनुयोगद्वार-सूत्र में अण्डों से बने रेशमी वस्त्रों को अण्डज एवं कीड़ों की लार से बने वस्त्रों को 'कीड़ज' कहा गया है। अलग-अलग वृक्ष के पत्तों के कीड़ों की लार से निर्मित वस्त्र का अलग नाम दिया गया है। नामकरण में कीड़ों की लार से ही निर्मित हो, ऐसा स्पष्ट नहीं है। सम्बन्धित वृक्ष के पत्तों या छाल से प्राप्त रेशों से निर्मित वस्त्र भी रहे हो। जैसे अंशुक वृक्ष की बाहरी छाल और भीतरी छाल से निर्मित वस्त्रों के अलग-अलग नाम दिये गये हैं। भीतरी छाल के रेशे महीन होने से उनसे निर्मित वस्त्र रेशमी लचक वाला होता था। इसके अलावा किसी देश या प्रदेश विशेष के रेशमी वस्त्र या रंगीन रेशमी वस्त्र। इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि वे वस्त्र 'कीड़ज' या 'अण्डज ही रहे हो। आचारांग सूत्र के वस्त्रैषणा अध्ययन में समस्त प्रकार के वस्त्रों की जानकारी प्रदान की गई है, जिससे आगम-युग के वस्त्रोद्योग की व्यापकता का पता चलता है। साधकों के लिए हिंसक वस्त्रों को छोड़ने का स्पष्ट निर्देश है। आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध के पन्द्रहवें अध्ययन के अनुसार भगवान महावीर को दीक्षा के समय एक लाख रूपये मूल्य के क्षौम-वस्त्र पहनाये गये थे। वे विशेष महीन कपास से निर्मित थे। उन्हें 'सूती-रेशम का नाम दिया जा सकता है। श्रमण-परम्परा में प्राणिज रेशम का निर्माण, व्यापार और उपयोग निषिद्ध रहा। ऊनी वस्त्र : आचारांग में वर्णित जंगिय-वस्त्र ऊनी-वस्त्र है। ये वस्त्र पशुओं के बालों से निर्मित होते थे। इन पाँच प्रकारों को पहले बताया जा चुका है। ऊन से कम्बलें बनाई जाती थी और उनमें रत्न भी जड़े जाते थे। चर्म वस्त्र ग्रन्थों में चर्म वस्त्रों का उल्लेख भी मिलता है। ये वस्त्र अनेक प्रकार के पशुओं के चर्म से बनते थे। आचारांग, निशीथ-चूर्णि आदि में अनेक प्रकार के चर्म-वस्त्रों का उल्लेख है। व्रती-समाज में चर्म-वस्त्रों का व्यापार और उपयोग नहीं किया जाता था। अन्य वस्त्र ऊपर वर्णित वस्त्रों के अलावा भी आचारांग20 मे वस्त्रों के अनेक प्रकार बताये गये हैं। जैसे - .. सहिण - बारीक और सुन्दर। .. काय - नीली कपास से निर्मित। (127)