________________ उद्योग-धन्धों के अलावा भी अनेक पेशे और व्यवसाय उपलब्ध थे। अपने कार्य, रोजगार और व्यवसाय की दृष्टि से समाज में एक लम्बी वर्ग-श्रृंखला थी, जिसके उल्लेख से तत्कालीन व्यवसायों की विविधता पर प्रकाश पड़ता है। ऐसे पेशेवर लोगों में - आचार्य, चिकित्सक (वैद्य), वास्तुपाठक, लक्षणपाठक, नैमित्तिक, गांधर्विक, नट, नर्तक, जल्ल (रस्सी का खेल करने वाले), मल्ल, मौष्टिक, विडम्बक (विदूषक), कथक, पूवक (तैराक), लासक (रास गाने वाले), आख्यायक (शुभाशुभ बताने वाले), लंख (बांस पर चढ़कर खेल दिखाने वाले), मंख (चित्रपट लेकर अर्जन करने वाले), तूगइल्ल (तूण बजाने वाले), तुम्बवीणिक (वीणावादक), तालाचर (ताल देने वाले), सपेरे, मागध (गाने-बजाने वाले), हास्यकार, मसखरे, चाटुकार, दर्पकार, कौत्कुच्य आदि के अलावा राज भृत्यों में छगग्राही, सिंहासनग्राही, पादपीठग्राही, पादुकाग्राही, यष्टिग्राही, कुन्तग्राही, चापग्राही, चमरग्राही, पाषकग्राही, पुस्तकग्राही, फलकग्राही, पीठग्राही, वीणाग्राही, कुतुपग्राही, धनुषग्राही, दीपिका (मशाल) ग्राही आदि का उल्लेख मिलता है। एक व्यक्ति अनेक प्रकार की योग्यताएँ रखता था और जीविका के लिए वह समयानुसार अनेक कार्य भी करता था। बौद्ध साहित्य में भी इन लघु व्यवसाइयों के नाम मिलते हैं :- किसान, बढ़ई, कुंभकार, माली, लोहार, धोबी, बुनकर, स्वर्णकार, पशुपालक, मल्लाह, मणियारिन, मछुआरे, गंधी (इत्र-विक्रेता), फेरी वाले, वैद्य, जादूगर, गणिका, वैश्या, वस्त्र-व्यापारी, रसोइया, नट, नर्तक, गायक, तालिक (ताली बजाकर गाने वाले), कुंभधुनिक (घड़े बजाकर गाने वाले), ग्वाले, चित्रकार, पणिहारिन, ज्योतिषी, रंजक, नाई, चर्मकार, हाथी दाँत का काम करने वाले, सूदखोर, खेलुक, गांधर्विक, मणिकार, बांस फोड़, योद्धा, तृणहारक (घसियारा), काष्ठहारक (लकड़हारा) आदि " कर्म-आर्य ____इन सबके अलावा चतुर्थ उपांग प्रज्ञापना में दो ऐसे प्रकार के मनुष्यों की चर्चा है, जिसका सम्बन्ध व्यक्ति के व्यवसाय और आजीविका से है। ये भेद हैं - कर्म आर्य और शिल्प आर्य। कर्म आर्य के अन्तर्गत दोस्सिया (दूश्यक), सौत्तिया (सौत्रिक), कप्पासिया (कार्पासिक), सुत्तवेयालिया (सूत्र-वैत्तालिक), भण्ड वैयालिया (भाण्ड-वैत्तालिक), कौसालिया (कौसालिका) तथा णरदावणिया (नरवाहनिक) को किया गया है। कार्य की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि अहिंसा आदि एवं शिष्ट सम्मत ढंग से आजीविका किये जाने वाले कर्म आर्यकर्म कहलाते हैं। (137)