________________ जहाज आदि व कृषि उपकरणों में हल, जुआ, पाटा आदि लकड़ी से निर्मित होते थे लकड़ी का काम करने वाले बढ़ई कहलाते थे। शिल्पी लकड़ी की वस्तुओं को अधिकाधिक कलात्मक बनाते। कल्पसूत्र में काष्ठ-खड़ाऊँ (पाउया) को वैडूर्य तथा रत्नों से जड़कर उसे अत्यन्त कलात्मक व मूल्यवान बनाने का उल्लेख है। गोशीर्ष चन्दन लकड़ियों में सबसे बहुमूल्य लकड़ी माना जाता था। जबकि वाहन निर्माण और मजबूती की दृष्टि से तिनिश काष्ठ श्रेष्ठ माना जाता था। ___काष्ठ-उद्योग केवल काष्ठ-उद्योग ही नहीं था अपितु वह अनेक प्रकार के कार्यो/उद्योगों के लिए सहायक व आधारभूत था। काष्ठकर्म एक विशेष शिक्षण व प्रशिक्षण का विषय था। कोक्कास बढ़ई ने यवन के बढ़ई आचार्यों से काष्ठ कर्म की शिक्षा प्राप्त की थी। गुड़-शक्कर उद्योग गन्ने की खेती का वर्णन किया जा चुका है। गुड़, मिश्री, खाण्ड और शक्कर गन्ने के मुख्य उत्पाद हैं। गुड़ तो मुख्य रूप से निर्मित किया जाता था पर उस समय शक्कर का उत्पादन भी होता था, ऐसे उल्लेख मिलते हैं। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार भारतीय व्यापारी कालिका द्वीप में अन्य वस्तुओं के साथ शक्कर भी ले गये थे। उसमें पुष्पोत्तर-शर्करा और पद्मोत्तर-शर्करा का उल्लेख विशिष्ट है। इससे पता चलता है कि ईक्षु-रस के अलावा अन्य रसों से भी शक्कर बनाई जाती थी। ईक्षु-रस व अन्य रसों से गुड़ बनाने की प्रक्रिया ज्यादा कठिन नहीं है, पर खाण्ड और शक्कर का निर्माण सचमुच तत्कालीन समय के विकसित वाणिज्यिककौशल का उदाहरण है। आगम-सूत्रों में ईक्षुगृह (इक्खुवाड़ा), ईक्षुयन्त्र (इक्खुजत) आदि के सन्दर्भ मिलते हैं।' अवश्य ही कोई परिशोधक प्रक्रिया और यन्त्र भी रहे होंगे। गुड़-शक्कर का सीधा उपयोग होता था और अनेक प्रकार की मिठाइयों में भी उनका उपयोग होता था। तरह-तरह के व्यंजनों और पकवानों का जो वर्णन मिलता है, उनमें शर्करा का विविध उपयोग होता था। तेल-उद्योग - कृषि उपजों के अन्तर्गत तिलहन भी होती थी। तिलहन में वह समस्त . प्रकार की कृषि उपज सम्मिलित है, जिसमें से तेल प्राप्त किया जाता है। उपासकदशांग के अनुसार सरसों, तिल, अलसी, एरण्ड, कुसुंभा, इंगुदी आदि से तेल निकाला जाता था। तत्कालीन विकसित समाज व्यवस्था को देखते हुए मुंगफली व (133)