________________ क्षमता नहीं रही हो तो उसका आंशिक रूप से ऋण माफ किया जाता था।" इससे ऋण और अग्रिम के साथ बीमा का तत्व भी देखने को मिलता है। ऋण निर्धारित दर, निर्धारित अवधि और निश्चित उद्देश्य/उद्देश्यों के लिए दिये जाते थे। व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक दोनों उद्देश्यों के लिए ऋण दिये जाते थे। परिस्थितियों के अनुसार ऋण की दर और अवधि परिवर्तित होती रहती थी। जमाएँ स्वीकार करना जमाएँ स्वीकार करने का अर्थ है - ऋण देने के लिए ऋण लेना। इसमें कम ब्याज दर पर ऋण लिया जाता है और अधिक ब्याज दर पर उसे दिया जाता है। . यह प्रक्रिया बैंकिंग व्यवसाय के लिए सामान्य बात है। जैसा कि कहा जा चुका है आगम-युग में संस्थागत बैंकिंग व्यवस्था नहीं थी। यह कार्य सम्पन्न वर्ग के हाथ में था। जो लोग सामान्य तौर पर उधारी का कार्य नहीं करते थे, वे अपने अतिरिक्त धन से अतिरिक्त आय के लिए उसे विश्वस्त व्यक्तियों के हाथों में सौंप देते थे। इस व्यवहार को निक्षेपण (निक्खेवग) कहा जाता था। कभी-कभी ऐसे मामलों में जमाएँ स्वीकार करने वालों की नियत खराब हो जाती थी तो वे धन लौटाने से मना कर देते। इसके लिए वे बही खातों में हेर-फेर कर देते और जमाएँ स्वीकार करने के साक्ष्यों को पलट देते थे। इससे बैंकिंग और व्यवसाय जगत को धक्का लगता था। ब्याज दरें ऊँची होने से भी वित्त का प्रवाह अवरुद्ध होता था। लोग धन को खजानों, दीवारों और जमीन में निधि के रूप में सुरक्षित रखते थे। श्रमण परम्परा के व्रतधारी श्रावक अचौर्य, अहिंसा और अपरिग्रह के माध्यम से ऐसी अनैतिक व अहितकारी घटनाओं का प्रतिवाद कर रहे थे। इससे बैंकिंग व्यवसाय के उज्ज्वल भविष्य के द्वार उद्घाटित हो रहे थे। (74)