________________ धातुएँ आगमों में अनेक धातुओं के उल्लेख हैं। खानों से कच्ची धातु 'अयस्क प्राप्त की जाती थी। लौहकारों की शालाओं को भी अयस्क कहा जाता था इन शालाओं में भगवान महावीर भी ठहरे थे। अयस्क से विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा धातु प्राप्त की जाती थी। धातुओं का शोधन और परिशोधन होता था। इसीलिए पुरूषों की 72 कलाओं में धातुवाद भी एक है। लोहा और स्वर्ण प्रमुख धातुएँ थीं। इनके अलावा ताम्बा, जस्ता, सीसा, चाँदी (हिरण्य अथवा रूप्य) आदि धातुएँ भी प्राप्त होती थी। दो धातुओं के मिश्रण से पीतल, कांस्य आदि अन्य धातुएँ भी बनाई जाती थीं आज जैसे यंत्र, संयंत्र और मशीनों के अभाव में भी उस समय सभी प्रकार की धातुओं के उल्लेख और उपयोग निश्चित ही किसी विकसित अवस्था के सूचक हैं। मानव के बुद्धि और श्रम की हर क्षेत्र में पूरी पैठ थी। इस बात का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि औषधियों के संयोग और रासायनिक प्रक्रियाओं से लोहे और ताम्बे से भी स्वर्ण बनाने की विद्याएँ और विधाएँ लोग जानते थे। जबकि आज इस विज्ञान और तकनीक के जमाने में भी इस प्रकार का कोई सूत्र हमारे पास नहीं है। खनिज धातुओं के अतिरिक्त खनन द्वारा खनिज उत्पाद भी प्राप्त होते थे। इन खनिज पदार्थों में लवण (नमक), ऊस (साजी माटी), गेरू, हरताल, हिंगुलक (सिंगरक), मणसिल (मनसिल), सासग (पारा), सेडिय (खेत मिट्टी), सोरट्ठिय, अंजन, अभ्रक आदि और विभिन्न चूना, मिट्टी, पत्थर आदि पाये जाते थे। इन चीजों से घरेलू और औद्योगिक आवश्यकताएं पूरी होती थीं। मूल्यवान पत्थर. . खानों से मूल्यवान पत्थर, मणियाँ आदि निकालकर उन्हें शोधित किया जाता था। ग्रन्थों में अनेक प्रकार के कीमती पत्थरों और मणियों के नाम प्राप्त होते हैं - यथा - गोमेद, कर्केतन, हीरा, पन्ना, वज्र, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंस गर्भ, पुलक, सौगंधिक, ज्योतिरस, अंजन, अंजनपुलक, रजत, जातरूप, अंक, स्फटिक, रिष्ट, इन्द्रनील, मरकस, सस्यक, प्रवाल (मूंगा), रूचक, भुजमोचक, 'जलकान्त, सूर्यकान्त, चन्द्रकान्त या चन्द्रप्रभ आदि मणि-मुक्ता के पारखियों .. और व्यापारियों को मणिकार कहा जाता था। लोग रत्न-मणियों के बड़े शौकीन (113)