________________ सचमुच बहुत बड़ा पाप और अपराध है। निःसन्देह, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की दृष्टि से भी वनों को नुकसान पहुँचाना बहुत हानिकारक है। भगवान महावीर ने . वनों को नुकसान पहुंचाने वाले कार्यों और धन्धों का पूर्ण निषेध किया है। वनों की रक्षा में उनके अहिंसा उपदेश की अत्यन्त प्रभावशाली भूमिका रही है। ऐसा करने से वनवासियों, आदिवासियों, वन-मानुषों और वन्य जीव जन्तुओं, पशुपक्षियों के प्राकृतिक आवास स्थल बने रहे। लोगों की आजीविकाएँ भी सहज रूप से चलती रहीं। वनों से अनेक उद्योग-धन्धों के लिए कच्ची और पक्की सामग्री प्राप्त होती हैं। राजगृह के नन्द मणिकार ने लोगों की भलाई के लिए वन लगाने का उपक्रम किया था, सुन्दर झील बनाई थी।" वनों में विविध दुर्लभ वनस्पति-समूह और जीव-जन्तु समूह पाये जाते थे। अनेक वृक्ष, फल, फूल और वनस्पतियाँ तो वनों में ही प्राप्त होती थीं। अशोक, तिलक, लकुच, छत्रोप, शिरीष, सप्तपर्ण, लोद्र, दाड़म, शाल, ताल, तमाल, प्रियक, प्रियंगु, पुर्पग, राजवृक्ष, नन्दी वृक्ष आदि वृक्षों के नाम उववाई सूत्र में प्राप्त होते हैं। राजगृह में मलुका वृक्षों के एक सघन-वन का वर्णन मिलता है। अन्य वृक्षों में - आम्र, निम्ब, जम्बू, अंकोल, बकुल, पलाश, पुतरंजन, बिभितक, शिंशपा, श्रीपर्णी, तिन्दुक, कपित्थ, मातुलिंग, बिल्वा, आमलग, फणस, अखत्था, उदम्ब्र, वट आदि नाम मिलते हैं। अनेक प्रकार के बाँस जैसेचाववंश, वेणु, कणक, कक्कावंश, वरूवंश, डण्डा, कुडा आदि अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ, औषधियाँ आदि भी वनों से प्राप्त होती थी। फर्निचर, रथ, गाड़ी, जहाज, नाव, हल, भवन-निर्माण सामग्री आदि अनेक वस्तुओं के लिए जंगलों से लकड़ी और अन्य चीजें प्राप्त होती थी। खनन खनन एक प्राथमिक उद्योग था। मानव की आर्थिक और सामाजिक आवश्यकताओं के लिए धरती के गर्भ से खानें खोद कर अनेक धातुएँ, खनिज और रत्न प्राप्त किये जाते थे। मिट्टी, पत्थर, धातु, रत्न और अनेक प्रकार के खनिज सम्बन्धी व्यवसाय खनन पर आधारित थे। खान खोदने वाले श्रमिक को 'क्षितिखनक' कहा जाता और खानों को 'आकर या 'आगर कहा जाता था। सूत्रों में अनेक प्रकार के खनिजों का उल्लेख मिलता है, उससे स्पष्ट होता है कि उस समय खनन भी एक प्रमुख व्यवसाय रहा था। (112)