________________ उपलों या कण्डों की अग्नि भर दी जाती। उसके चारों ओर गोलाई में गड्ढे खोदकर उसमें पकाने के लिए फल रखे जाते। बीच के गड्ढे और आसपास के गड्ढे की दीवार में छेद रखे जाते। धुआँ और गर्मी से फल पक जाते थे। 3. गंध पर्यायामः पके फलों के बीच कच्चे फलों को रखकर फल पकाना। इसमें पके फलों की गंध से कच्चे फल पक जाते थे। ककड़ी, खीरा, बिजौरा आदि फलों को गंधपर्यायाम से पकाया जाता था। 4. वृक्ष पर्यायामः वृक्ष पर सहज/प्राकृतिक रूप से फलों के पकने को वृक्षपर्यायाम कहा जाता है। फलों को सुखाया भी जाता था। जहाँ सुखाया जाता उस स्थान को कोट्टक कहा जाता। फलों से अनेक प्रकार के व्यंजन और पेय तैयार किये जाते थे। आचारांग से पता चलता है कि उस समय आम, अम्बाड़क, कपित्थ (कैथ), मातुलिंग (बिजौरा), द्राक्ष, अनार (दाड़म),खजूर, नारियल (डाभ), करीर (करील), बेर, आमला, इमली आदि फलों से पेय बनाये जाते थे। 4 फल वृक्षों से प्राप्त होते हैं। ग्रन्थों में आम, जम्बूफल, शाल, अखरोट, पोलू, सेलू, सल्लकी, मोचकी, मालूक, बलुक, पलाश, करंज, सीसम, पुत्रजीवक, अरिष्ट, बहेड़ा, हरड़, भिलवा, अशोक, दाड़म, लूलच, शिरीष, मातुलिंग, चन्दन, अर्जुन, कदम्ब आदि अनेक प्रकार के वृक्षों के नाम प्राप्त होते हैं। इन वृक्षों से फलों के अतिरिक्त अनेक प्रकार की औषधियाँ, जड़ी-बूंटियाँ आदि प्राप्त होती थीं / वृक्षों और फलों की प्रचुरता से आम जन की अनेक मूलभूत आवश्यकताएं पूरी होती थी। इनसे लोगों की आजीविका जुड़ी हुई थी। ___ इस प्रकार हम देखते हैं कि उद्यान-कला या बागवानी विकसित और समृद्ध दशा में थी। पक्षी, कीट, पतंग, तितलियाँ, मधुमक्खियाँ, भौरे आदि जीव-जन्तुओं * से पारिस्थिंतिकी व पर्यावरण सन्तुलन बहुत अच्छा था। - वानिकी और वनोत्पाद उपवनों के लिए मानव श्रम और कौशल की आवश्यकता होती है। परन्तु वन स्वतः उगते हैं, होते हैं। आज की भाँति उस समय सघन वृक्षारोपण के द्वारा वन लगाने जैसे किसी अभियान की आवश्यकता नहीं थी, परन्तु लोग वनों-अटवियों का महत्व समझते थे और आवश्यकतानुसार उनका संरक्षण-संवर्धन करते थे। वन * अनेकानेक जीवों के आश्रय होते हैं। वनों को नुकसान पहुँचाना, नष्ट करना, . (111)