________________ परिच्छेद तीन उद्यानिकी, वानिकी और खनन जिस प्रकार प्राचीन भारत का मानव खेती-बाड़ी में निष्णात था उसी प्रकार बागवानी में भी निपुण था। बागवानी से आर्थिक-लाभ के अलावा पर्यावरण, सौन्दर्य, शृंगार, सत्कार, सुगन्ध, उत्सव, मनोरंजन, ध्यान, पूजा, भक्ति आदि अनेक बातें जुड़ी हैं। लोग साग-सब्जियों के भी बाग लगाते थे' तथा वृक्ष-उपवन भी लगाते थे नगरों के बाहर या बीच में रमणीय उद्यान हुआ करते थे। उद्यान, कलियाँ, फल, पत्तियाँ, टहनियाँ, चिडिया, कोयल, तोता, मैना, मयूर, हंस, सारस, चकवा, क्रौंच, तितली, भौंरा, जुगनू आदि साहित्य-रसिकों के लिए मुख्य विषय रहे हैं। फूल-लताएँ - जैन आगम-ग्रन्थों में इतने फूलों, फलों, लताओं और वनस्पतियों के नाम मिलते हैं कि उस समय के उद्यान-विज्ञान पर दाँतों तले अंगुली दबानी पड़े। अन्तकृतदशा के अनुसार उद्यान का वर्णन कितना मनोरम है - अर्जुन मालाकार और उसकी पत्नी बागवानी में कुशल थी। उनकी पुष्प वाटिका में पाँच वर्णों के 'फूल उगाये जाते थे। प्रातःकाल वे वाटिका से पुष्प-चयन करते तथा बाजारों में - पुष्प-येकरियाँ भर ले जाते, बेचकर धन अर्जित करते / ग्रन्थों में उज्जाण (उद्यान), आराम और निजाण - इन तीन प्रकार के उपवनों के उल्लेख प्राप्त होते हैं। उद्यान में पुष्प वाले अनेक प्रकार के वृक्ष होते थे। इन उद्यानों में उत्सव, अभिनय, नाटक आदि भी होते थे तथा शृंगार काव्य पढ़े जाते थे। उद्यान नगर के पास होते थे। आराम में वृक्ष और लता-कुंज होते थे। इनमें दम्पत्ति तथा धनाढ्य लोग क्रीड़ाएँ करते थे। केवल राजाओं के लिए सुरक्षित उद्यानों को निजाण कहा जाता था। अनेक उद्यानों के नाम ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। तीर्थंकर भगवान महावीर और श्रमण विचरण करते हुए नगर के बाहर स्थित उद्यानों में ठहरा करते थे। सूर्योदय, चन्द्रोदय, आम्रोदय, अशोक-वाटिका, गुणशीलक, जिर्णोद्यान, तिन्दुक आदि अनेक उद्यानों के नाम आते हैं। उद्यानों में पद्म, नाग, अशोक, चम्बक, चूत (आम्र), वासन्ती, अतिमुक्तक, कुन्द, श्यामा आदि लताएँ तथा कोरण्टक, बन्धुजीवक, कनेर, कुब्जक * (श्वेत गुलाब), जाति, मोगरा (बेला), युथिका (जूही), मल्लिका, नवमालिका, (109)