________________ प्राथमिक उद्योगों के साथ आगे के कुछ स्तरों की गतिविधियाँ गृह उद्योग मानी जा सकती है। विभिन्न हस्तशिल्प (Handicrafts) उद्योग इनके अन्तर्गत हैं। जिनका वर्णन आगे किया जायेगा। जब गृह और कुटीर उद्योग अपना विकास करते हैं जो वे लघु औद्योगिक इकाइयों का रूप धारण कर लेते हैं। कितने ही व्यवसाय स्वभावतः औद्योगिक रूप में ही सम्पन्न हो सकते हैं। वर्तमान में उद्योगों-कारखानों का जो स्वरूप है, वह अठारहवीं शताब्दी की औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप विकसित हुआ है। जिनमें यंत्रों, संयंत्रों और मशीनों का प्रयोग मुख्य रूप से हुआ है। इनमें लघु और बड़े उद्योगों को उनके पूंजी-निवेश के आधार पर विभाजित किया गया है। जैन आगमों में कारखाना पद्धति के अनुसार औद्योगिक साम्राज्य का उल्लेख भले ही नहीं हो। पर समूहिक उद्यमिता और बड़े पैमाने पर उत्पादन अवश्य होता था। जहाँ बहुत सारे श्रमिक, कर्मचारी और नौकर कार्य करते थे। जिनकी तुलना वर्तमान की औद्योगिक इकाइयों से की जा सकती है। उपासकदशांग में वर्णित सकडाल पुत्र' के भाण्ड उद्योग की तुलना इससे की जा सकती है। श्रावक सकडालपुत्र के व्यवसाय में करीब एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं का निवेश था। नगर के बाहर 500 दुकानें थीं और हजारों श्रमिक और कर्मचारी उसके व्यवसाय से प्रत्यक्ष जुड़े हुए थे, जो खानों से मिट्टी लाने से लेकर पात्र-विक्रय तक अपनाअपना कार्य करते थे। ___ कोई भी एक चीज विकसित होती है तो उसके साथ-साथ अनेक चीजें विकसित होती हैं। औद्योगिक विकास अकेला कभी नहीं हो सकता है। निश्चित ही उस विकास के साथ-साथ वित्त, परिवहन, विपणन आदि आधारभूत बातें भी विकसित रही होगी। व्यवसाय, शिल्प और 72 कलाएँ ज्ञाताधर्मकथांग और अन्य आगम ग्रन्थों में जिन बहत्तर कलाओं का उल्लेख हैं, उनसे तत्कालीन उद्योग, शिल्प आदि का व्यापक निदर्शन प्राप्त होता है। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित इन 72 कलाओं का परिचय निम्नानुसार है:1. लेहं लेख (लिखने की कला) 2. गणियं गणित (गणित और सम्बन्धित विषय) (118)