________________ खाद जैसा कि बताया गया कृत्रिम-खाद की आवश्यकता ही नहीं थी और उपलब्धता भी नहीं थी। पिण्डर्नियुक्ति में बताया गया है कि गोब्बर गाँव की शालि अच्छी मानी जाती थी। संभवत वहाँ कृषि और पशुपालन होने से गोबर की सुलभता और गोबर-खाद का प्रयोग खूब होता होगा इसलिये गाँव का नाम ही गोब्बर पड़ गया और वहाँ की उपज भी अच्छी मानी जाने लगी। वृक्षों के पत्तों, गन्ने के पत्तों, ऊँट की लेडी आदि भी खाद बनाने के लिए काम में आती थी। जिन खेतों की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती थी, किसान खाद और कूड़े के ढेर को खेतों में बिछाते थे। पशु की हड्डियों और सींगों का उपयोग भी खाद के लिए किया जाता था। जुताई और बुवाई __ कृषि का आरम्भ भूकर्षण से होता था। बुवाई से पूर्व भूमि को जोतकर तैयार करने को भूकर्षण कहा गया है। कुछ विद्धानों ने 'फोडीकम्म कर्मादान को जुताई से जोड़ दिया, जो अर्थसंगत और तर्कसंगत नहीं है। उपासकदशांग सूत्र टीका में खान खोदने और पत्थर फोड़ने को फोडी-कर्म कहा है। योगशास्त्र और त्रिषष्टिशलाकापुरुष,चरित्र में तालाब व कुएँ आदि को खोदने, शिलाओं को तोड़ने आदि को फोड़ी-कर्म बताया गया है। . चम्पानगरी के खेतों की भूमि सैकड़ों हलों से जोती जाती थी। इससे खेतों की मिट्टी भुरभुरी और कंकड़-पत्थरों से रहित हो गई थी। उस समय के व्यक्तियों को अच्छे बीजों का भी ज्ञान था। बीजों की गुणवत्ता बनाये रखने का किसान पूरा ध्यान रखते थे तथा बुवाई के लिए श्रेष्ठ बीजों का उपयोग करते थे। स्थानांग-सूत्र में बुवाई की चार विधियाँ बताई गई है1. वापिता : बीज को एक बार बोना। 2. परिवापिता : पौधे को एक स्थान से उखाड़कर पुन: रोपित करना / यह प्रविधि ... आज भी प्रयुक्त होती है। 3. निदिता : खेतों में से घास आदि निकालकर बुवाई करना। 4. परिनिदिता : अंकुरण से फसल प्राप्ति तक समय-समय पर खरपतवार हटाना। आज भी इस प्रकार की पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं। खेतों में बीज-वपन इस प्रकार किया जाता था कि अंकुरण ठीक प्रकार से हो सके। (97)