________________ - राज्य द्वारा सिंचाई-प्रबन्धन का कोई विशेष उल्लेख आगम ग्रन्थों में तो नहीं मिलता पर अन्य स्रोतों से यह पता चलता है कि राज्य द्वारा भी सिंचाई की व्यवस्थाएँ की जाती थीं। विश्ववर्मन के गंगधार प्रस्तर लेख में राज्य द्वारा निर्मित जलाशय, कूप, वापी, प्रपा (प्याऊ), सरोवर, तड़ाग आदि जल-स्रोतों के उल्लेख मिलते हैं, जिनसे सिंचाई की जाती थी। रूद्रदामन के गिरनार शिलालेख (लगभग 150 ई.) की 15वीं पंक्ति में मौर्यकालीन सौराष्ट्र के प्रशासक पुष्पमित्र द्वारा सुदर्शन सरोवर बनवाने का उल्लेख मिलता है। सरोवर से सिंचाई भी होती थी। एक बार अधिक-वर्षा से सरोवर का बांध टूट गया तो रूद्रदामन ने उसको पुनः बंधवाया। बाद में एक बार स्कन्दगुप्त ने इस बांध का जिर्णोद्धार करवाया था।" खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख के अनुसार कलिंग राजा खारवेल द्वारा बनवाई नहर से सिंचाई होती थी खेती पर आपदाएँ कृषि अपने उत्कर्ष पर थी और वह उस समय का प्रमुखतम धंधा था। अधिकतर खेती बाड़ी मानसून पर निर्भर थी। इसलिए अतिवृश्टि और अनावृष्टि, दोनों ही स्थितियाँ जन-जीवन और अर्थव्यवस्था को झकझोर देती थी। अतिवृष्टि से तो वर्षाकालीन फसलें ही समाप्त होती थीं। जल की प्रचुरता से अन्य ऋतुओं की . फसलें आसानी से हो जाती थीं। परन्तु अनावृष्टि की मार तो वर्षों तक रहती थी। ... महानिशीथ के अनुसार दुष्काल में लोग बाल-बच्चों तक को बेच डालते * थे तथा अनेक लोग ऐसे संकट के समय में दास-वृत्ति स्वीकार कर लेते थे। - आवश्यक चूर्णि, निशीथचूर्णि, व्यवहार भाष्य में अतिवृष्टि और बाढ़ से प्रलय और कृषि-हानि के वर्णन मिलते हैं। इनके अलावा कीड़ों-मकोड़ों, जीव-जन्तुओं, हिमपात, पाले और ओलों से भी फसलों को नुकसान होता था। अपनी फसलों को नुकसान से बचाने के लिए लोग तरह-तरह के यत्न करते थे। हालांकि पर्यावरण अच्छा होने से फसलों में बीमारियाँ कम लगती थीं। राज्य की भूमिका ... यूनानी यात्री मैगस्थनीज के अनुसार भारत में कृषि का इतना महत्व था कि खेती-बाड़ी करने वाले युद्ध और अन्य राजकीय सेवाओं से मुक्त रहते थे। उनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता था। यहाँ तक कि गृह युद्ध के समय सैनिकों को निर्देश होता था कि वे कृषि और कृषकों को कोई हानि नहीं पहुँचायें / (99)