________________ उपहार व भेंट राजाओं से विशेष मुलाकात और विशेष अवसरों पर उन्हें उपहार प्रदान किये जाते थे। इससे राजकोष की अभिवृद्धि होती थी। ज्ञाताधर्मकथांगा इस बारे में पर्याप्त सन्दर्भ देता है। मेघकुमार के जन्मोत्सव पर राजा श्रेणिक ने अनेक लोगों और सामन्तों को आमन्त्रित किया। जन्मोत्सव में भाग लेने वालों ने राजा को हाथी, घोड़े, रत्न आदि बहुमूल्य उपहार प्रदान किये। लोग किसी व्यवसाय-विशेष के लिए अनुमति या कर-मुक्ति चाहते तो विभिन्न उपहार लेकर राजा के पास जाते। राजा उपहार स्वीकार करता तथा उन्हें नियमों के अन्तर्गत वांछित छूट या सुविधा प्रदान करता था। थावच्चा सार्थवाही अपने पुत्र के दीक्षा महोत्सव की अनुमति लेने के लिए उपहार लेकर राजा के पास गई थी। राजगृह का श्रेष्ठी नन्द मणिकार राजा श्रेणिक के पास मूल्यवान उपहार लेकर गया और राजगृह में पुष्करिणी निर्मित करने की अनुमति प्राप्त की। कैद से मुक्ति के लिए धन्य सार्थवाह ने सम्बन्धियों और साथियों के माध्यम से राजा को बहुमूल्य उपहार भिजवाये। तत्कालीन समय में राजाओं को उपहार और भेंट देना सामान्य परम्परा थी और इससे राजकोष पर अनुकूल असर होता था। गुप्त व लावारिस धन राज्य की सीमाओं के अन्तर्गत प्राप्त गुप्त निधि राज्य की समझी जाती थी। उस समय में लोग धन को जमीन में गाड़ दिया करते थे। इसलिए गुप्त धन प्राप्ति के अनेक उदाहरण ग्रन्थों में मिलते हैं। जिस सम्पत्ति का कोई वारिस नहीं होता या किसी व्यक्ति का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता तो मरणोपरान्त उस सम्पत्ति पर राज्य का अधिकार हो जाता था। उत्तरांध्ययन सूत्र के अनुसार जब भृगु पुरोहित ने परिवार सहित 'दीक्षा ग्रहण कर ली तो राजा ने उसकी सम्पत्ति को राजकोष में जमा कराने के आदेश दे दिये। एक बार एक वणिक् की मृत्यु हो जाने पर उसकी गर्भवती विधवा की सम्पत्ति इसलिए अधिगृहीत नहीं की कि पुत्र होने की स्थिति में वह उसका उत्तराधिकारी हो जायेगा। जीवन की कठिन स्थितियों में पुरुषस्वामित्व और उत्तराधिकार के प्रति उदारता नहीं बरतना समाज को कमजोर करना है। आगम के अनेक सूत्र स्त्री को स्वामित्व, स्वतन्त्रता और अधिकारिताएँ प्रदान करते हैं। (81)