________________ जाता था। कर-मुक्ति के अन्तर्गत राजा बेगार से भी मुक्ति प्रदान करता था। कालान्तर में इस प्रवृत्ति ने निर्धनों के शोषण का रूप ले लिया था। भगवान महावीर के उपदेशों में शोषण की स्पष्ट मनाही रही। फलस्वरूप उनके अनुयायियों ने .. मानवता की प्रतिष्ठा की बहाली के लिए परिणामदायी कार्य किये। राज्य के व्यय राजा का कर्तव्य होता है कि वह हर कार्य में प्रजा-हित को सर्वोपरि रखें। सूत्रकृतांग सूत्र में कहा गया है कि श्रेष्ठ राजा पीड़ित प्राणियों का रक्षक होता है। . वह प्रजा के कल्याण के लिए नैतिकता और मर्यादा की स्थापना करता है। वह सेतु, पुल, नहर, पथ आदि का निर्माण करवाता है। व्यापार, वाणिज्य और कृषि की उचित व्यवस्था करता है। चोर, लुटेरों, उपद्रवियों तथा रोग, अकाल व महामारी से राज्य की रक्षा करता है। जन-कल्याण राजा को प्रजा का पालक कहा गया है। अन्तकृतदशा सूत्र के अनुसार वासुदेव श्रीकृष्ण ने घोषणा करवाई थी कि जो भी व्यक्ति दीक्षा लेना चाहे, वह दीक्षा ले सकता है। उसके परिवार के भरण-पोषण की सारी समुचित व्यवस्था राज्य की ओर से की जायेगी। राजप्रश्नीय सूत्र के अनुसार राजा प्रदेशी श्रमण केशीकुमार का अनुयायी बन जाने के बाद अपने अधीनस्थ सात हजार गाँवों की आय का चौथाई भाग दान देने में व्यय करने लगा था। कलिंग नरेश खारवेल अपनी प्रजा के लिए प्रचुर धन व्यय करता था। इससे लगता है कि उस समय जिन राज्यों या राजाओं पर श्रमण परम्परा का प्रभाव था, वहाँ राजस्व का अधिकांश भाग अधिकतम प्रजा हित पर व्यय होता था। अनुत्पादक और सैन्य खर्च घट जाता था। जिसका प्रभाव बाद में भी देखा जाता है। इससे राज्य और प्रजा की समृद्धि पर अनुकूल असर होता था। शासन व्यवस्था राज्य की व्यवस्थाओं को संभालने के लिए शासकीय और प्रशासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों पर काफी व्यय होता था। ग्रन्थों में युवराज, श्रेष्ठी, अमात्य, पुरोहित, गणनायक, दण्डनायक, राजेश्वर, सेनापति, तलवार, मांडविक, कौटुम्बिक, मंत्री, महामंत्री, भण्डारी, गणक, द्वारपाल, अंगरक्षक, दूत, संधिपाल आदि राज कर्मचारियों और अधिकारियों के उल्लेख मिलते हैं।” इन कर्मचारियों (84)