________________ पराजित राजाओं से प्राप्त धन जो राजा पराजित हो जाता वह विजेता राजाओं को धन-सम्पत्ति भेंट करता था। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार भरत चक्रवर्ती ने जब यवन, अरब आदि देशों के राजाओं पर विजय प्राप्त कर ली तो उन देशों के राजाओं ने भरत को हार, मुकुट, कुण्डल आदि आभूषण और रत्न आदि भेंट किये थे। हाथीगुंफा के शिलालेख से ज्ञात होता है कि कलिंगाधिपति खारवेल को पराजित राजाओं से मणि, रत्न आदि सम्पत्ति प्राप्त हुई थी। इससे भी राजकोष में वृद्धि होती थी। परन्तु, ये माध्यम कोष वृद्धि के स्थायी उपाय नहीं थे। प्रासंगिक अथवा आकस्मिक माध्यमों पर निर्भरता राज्य की स्थिति को सुदृढ़ नहीं बना सकती। बेवजह शक्तिप्रदर्शन और साम्राज्य-विस्तार की लालसा में की गई लड़ाइयों से मानव जाति को लाभ नहीं हुआ। अर्थदण्ड राज-नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माना लगाया जाता था। इससे राजस्व में वृद्धि होती थी और शासन-प्रशासन चुस्त-दुरुस्त रहता था। राजा श्रेणिक ने मेघकुमार के जन्मोत्सव की खुशी में दण्डकरों को माफ कर दिया था 4 इससे जुर्म की सजा के रूप में अर्थदण्ड व्यवस्था सिद्ध होती है। आदिपुराण में तीन प्रकार के दण्डों में अर्थहरण-दण्ड को प्रथम बताया है। अर्थदण्ड का मुख्य ध्येय प्रजा से नियमों का अनुपालन करवाना होता है, न कि राजकोष भरना। कर-संग्रहण राज्य में कर संग्रह की माकूल व्यवस्थाएँ थी। कहीं-कहीं कर वसूली में राज्य कर्मचारियों द्वारा कठोरता बरतने के उदाहरण भी मिलते हैं। विपाकसूत्र में विजय वर्धमान खेट का उल्लेख है। वह 500 गांवों तक फैला हुआ था। यहाँ इकाई नामक राष्ट्रकूट कर, भर (सीमा शुल्क), भेद्य (दण्ड कर), देय (अनिवार्य कर), ब्याज आदि की वसूली में अत्यन्त निर्दयता से पेश आता था। वह कुन्त (तलवार से), लंछपोष (लंछ नामक चोरों को नियुक्त करके), आदीपन (आग लगवा कर), पंथकोट्ट (पथिकों को कत्ल करवा कर) आदि अमानुषिक उपायों से प्रजा को उत्पीडित और शोषित करता था ऐसे राजा को ग्रन्थों में पापी राजा कहा गया है और उसके भयंकर दुष्परिणाम बताकर क्रूरता से बचने का सन्देश दिया गया है। सामान्यतया कर वसूली में इतनी कठोरता नहीं बरती जाती थी। करदाताओं को (82)