________________ कर जमा कराने के लिए छूट दी जाती थी। छूट के उपरान्त भी कर जमा नहीं कराने पर उन्हें उचित तरीके से दण्डित किया जाता था। कर वसूली में अत्यधिक कठोरता राज्य और प्रजा दोनों के हित में नहीं है। कर-मुक्ति ___ आगम-ग्रन्थों में कर-मुक्ति के अनेक प्रमाण मिलते हैं। राजा किसी वस्तु-विशेष, व्यक्ति या समूह-विशेष को भिन्न-भिन्न कारणों से कर-मुक्ति प्रदान किया करते थे। राज्य में खुशी के अवसरों और मंगल-प्रसंगों पर भी प्रजा को कर से राहत प्रदान की जाती थी। राजकुमार वर्द्धमान के जन्म के मंगल अवसर पर राजा सिद्धार्थ ने दस दिनों तक प्रजा को भूमिकर, चुंगीकर, दण्ड, बेगार आदि राजकीय दायित्वों से मुक्ति प्रदान की थी तीर्थंकर महावीर के परम भक्त राजा श्रेणिक के पुत्र मेघरथ के जन्मोत्सव पर भी दस दिनों तक सभी प्रकार के करों से प्रजा को मुक्त कर दिया था। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार हस्तिशीर्ष के पोतवणिकों से राजा कनककेतु को बहुमूल्य उपहार प्राप्त किये और पूछने पर कलियद्वीप में श्रेष्ठ सुन्दर अश्व होने की सूचना मिली तो उन्हें मुक्त रूप से व्यापार करने की अनुमति प्रदान कर दी थी।" अनेक जनोपयोगी वस्तुओं, विशेष महत्व के उद्योगों या व्यापारों अथवा व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह को निर्दिष्ट अवधि या सदा के * लिए छूट प्रदान की जाती थी। करापवंचन ... मानव की वृत्ति कर नहीं देने की या न्यून कर देने की रहती है। यह वृत्ति प्राचीन समय में भी थी। कई व्यापारी उचित करारोपण के बावजूद कर चोरी कर लेते थे। जबकि कई बार राज्य द्वारा अनुचित करारोपण से व्यवसायियों में करापवंचन की प्रवृत्ति बढ़ जाती थी। करों से बचने के लिए व्यापारी राजपथ से यात्रा नहीं करते थे तथा कर बचाने के लिए अनेक प्रकार के यत्न करते थे। अचौर्य व्रत करापवंचन पर नैतिक रूप से अंकुश लगाता है। बेगार प्रथा राज्य संचालन में प्रत्येक वर्ग और स्तर के व्यक्ति का योगदान होता था। जो व्यक्ति निर्धन होते थे, वे राज्य के लिए श्रम का दान करते थे। इसे बेगार कहा जाता था। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार राजा की आज्ञा से श्रमिक बेगार करते थे तथा वह अनिच्छा पूर्वक की जाती थी। बेगार को राज्य का अधिकार बताया (83)