________________ सिक्कों के अन्तर्गत परिगणित किया गया है। देश-विदेश में खुदाई और अन्य माध्यमों से प्राप्त सिक्कों पर विभिन्न जैन प्रतीकों से जैन धर्म के इतिहास और आर्थिक विकास में उसके योगदान पर महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। डॉ. नेमीचन्द्र शास्त्री ने 'प्रचीन जैन सिक्कों का अध्ययन विषयक निबन्ध में ऐसे अनेक जैन सिक्कों पर प्रकाश डाला है। कुछ उल्लेख दृष्टव्य हैं - 1. ईस्वी सन् से पूर्व प्रथम और दूसरी सदी के उज्जयनी के ताम्र-सिक्कों पर एक ओर वृषभ और दूसरी ओर सुमेरु अंकित है। इन सिक्कों पर स्पष्ट रूप से जैन प्रतीक अंकित है। 2. पंजाब के वन्नू जिले में सिन्धु नदी के पश्चिमी तट पर लीडिया के राजा क्रीसस का स्वर्ण-सिक्का मिला है। इस सिक्के में एक ओर वृषभ और सिंह का मुँह बना है तथा दूसरी ओर एक छोटा और एक बड़ा पंचमार्क अंकित है। राजा क्रीसस ने इस सिक्के पर जैन धर्म के प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के चिह्न अंकित कर अपनी भावाभिव्यक्ति की है। जैन ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि ईस्वी सन् की कई शताब्दियों पूर्व यूनान, रोम, मिस्र, ब्रह्मा, श्याम, अफ्रीका, सुमात्रा, जावा, बोर्नियो आदि देशों में जैन धर्म का प्रचार था। 3. रैप्सन ने अपने भारतीय सिक्के' नामक ग्रन्थ और रॉयल एशियाटिक सोसाइटी की पत्रिका के अनेक निबन्धों में भारतीय यूनानी नरेशों के सिक्कों का विवरण दिया है। इससे प्रतीत होता है कि अनेक यूनानी राजाओं पर जैन धर्म का पूर्ण प्रभाव था। जिसकी वजह से उन्होंने अपने सिक्कों पर जैन प्रतीकों को अंकित करवाया। इन सिक्कों पर वृषभ, हाथी और अश्व अंकित है, जो प्रथम, द्वितीय और तृतीय तीर्थंकरों के चिह्न हैं। 4. जनपद और गणराज्यों के प्राप्त सिक्के उदम्बर जाति के माने जाते हैं। डॉ. नेमीचन्द्र शास्त्री ने प्रथम प्रकार के सिक्कों को किसी जैन धर्मानुयायी राजा का माना है। जिन पर एक ओर हाथी, घेरे में बोधिवृक्ष (या अशोक वृक्ष) व नीचे एक साँप है तथा दूसरी ओर मन्दिर स्तम्भ के ऊपर स्वस्तिक और धर्म चक्र हैं। . 5. मालव जाति के कई सिक्के जैन हैं। जिन पर अशोक वृक्ष, कलश, सिंह, वृषभ आदि अंकित हैं। इस जाति के यम, मय और जायक जैन धर्म के प्रति श्रद्धावान थे। यम आचार्य सुधर्म के संघ में जैन मुनि बन गये थे। (69)