________________ कैलाश चन्द्र शास्त्री का प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ.-197 18. देखें 'प्रकीर्णक साहित्य : मनन और मीमांसा' सम्पादक - प्रो. सागरमल जैन 19. जैन, सागरमल एवं कोठारी सुभाष (डॉ.), आगम अहिंसा समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर से प्रकाशित पुस्तक 'देविन्दत्थओ' की विस्तृत भूमिका। 20. मरण समाधि गाथा : 661-663 21. दोशी, बेचरदास, जैन साहित्य का बहद् इतिहास भाग-1, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, पृष्ठ-27।। 22. जैन, प्रेमसुमन (डॉ.) प्रकीर्णक साहित्य का कथात्मक वैशिष्ट्य' 'प्रकीर्णक साहित्य मनन और मीमांसा' पृ.-87 23. देवेन्द्र मुनि (आचार्य), आगम साहित्य : मनन और मीमांसा पृ.-404 . 24. जैन, सागरमल (प्रो.) 'प्रकीर्णक साहित्य मनन और मीमांसा' (आगम संस्थानं, उदयपुर द्वारा प्रकाशित) में प्रकाशित लेख - 'प्राचीनतम प्रकीर्णक ऋषिभाषित'। ___25. मेहता, मोहनलाल (डॉ.) जैन साहित्य का बहद् इतिहास भाग-दो, पृष्ठ-68 ... 26. मेहता, मोहनलाल (डॉ.) जैन साहित्य का बहद् इतिहास भाग-दो, पृष्ठ 129 27. जैन, जगदीशचन्द्र (डॉ.) प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ.-195-196 . 28. जैन, जिनेन्द्र (डॉ.), जैनागमों का व्याख्या साहित्य, जिनवाणी, जैनागम - विशेषांक, अप्रेल-2002, पृष्ठ-475. 29. वही, पृष्ठ-482 पर उद्धृत। 30. देवेन्द्र मुनि (आचार्य), आगम साहित्य : मनन और मीमांसा पृ.-489 31. जैन, जगदीशचन्द्र (डॉ.) प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृष्ठ-234 32. देखें, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृष्ठ-261 (23)