________________ अर्थशास्त्र, राजनीति, कामशास्त्र, निमित्तशास्त्र, अंगविद्या, रत्नपरीक्षा, संगीतशास्त्र, आदि पर भी महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे गये थे। असि, मसि व कृषि सर्वप्रथम ऋषभदेव ने संसार को असि, मसि और कृषि का बोध प्रदान किया। असि यानि राजतन्त्र, मसि यानि अर्थतन्त्र और कृषि यानि प्रजातन्त्र / / असि, मसि, कृषि को अर्थशास्त्र की त्रिपदी कहा जा सकता है। मानव सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, कला-शिल्प, व्यापार-वाणिज्य आदि सभी प्रकार की उन्नतियों की आधारशिलाएँ इस त्रिपदी पर रखी गईं। असि में आत्मरक्षा और सुशासन की व्यवस्था है। मसि में लिपि और लेखन-कला का बोध है। विज्ञों के मत में ई.पू. पाँचवीं शताब्दी में लेखन का रिवाज था। राजप्रश्नीय सूत्र में पत्र, पुस्तक, पुस्तक का पुट्ठा, डोरी, गांठ, मषिपात्र, ढक्कन, जंजीर, स्याही, लेखनी, अक्षर आदि का लेखन सामग्री के रूप में उल्लेख है। आगमों में अठारह लिपियों का उल्लेख भी सुव्यवस्थित लेखन प्रणाली का संकेत है। भगवती सूत्र में ब्राह्मी लिपि को नमस्कार किया गया है - णमो बंभिए लिवीए। विद्या, वाणिज्य और शिल्प . आचार्य जिनसेन ने भगवान ऋषभ के समय प्रचलित आजीविका के छः साधनों का उल्लेख किया है। जिनमें असि, मसि और कृषि के अलावा विद्या, वाणिज्य (व्यापार, व्यवसाय) और शिल्प (कला, हुनर, कौशल) को सम्मिलित किया गया है। उस समय के मानवों को भी 'षट्कर्मजीविनाम्' कहा गया है। प्राप्त साधनों और संसाधनों को अहिंसक तरीकों से कैसे बहुगुणित किया जाय, इसके लिए प्रजापति ऋषभ ने अपनी प्रजा को बीज का रहस्य बताया। उनके बीज के रहस्य में कृषितन्त्र, अर्थतन्त्र से लगाकर आत्मतन्त्र तक की साधनाओं के सार छुपे हुए हैं। __ ऋषभ प्रथम भाषाविद् थे। उन्होंने उनकी ज्येष्ठ पुत्री ब्राह्मी को अक्षर दिये, अठारह लिपियों का ज्ञान कराया और सम्पूर्ण व्याकरण सिखाया। वे प्रथम गणितज्ञ थे। उन्होंने उनकी दूसरी पुत्री सुन्दरी को अंक दिये, अंक/गणित शास्त्र दिया। कला, शिल्प सब कुछ दिया। विश्व के सारे विषय अक्षरों और अंकों में समाहित है। आगमो में अर्थशास्त्र के सन्दर्भ - जैन पौराणिक परम्परा में ऋषभ को तत्कालीन अर्थव्यवस्था का संस्थापक माना गया है। जिनसेनाचार्य के अनुसार ऋषभ ने उनके ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भरत (38)