________________ देता था। उसकी हवा शीतल, शीतल आभामय; मिट्टी स्निग्ध, स्निग्ध आभामय तथा सुन्दर वर्ण वाली थी। वहाँ की छाया अत्यन्त गहरी होती थी। उसका दृश्य इतना रमणीय लगता था, मानो बड़े-बड़े बादलों की घटाएँ घिरी हों। वनखण्ड का यह वर्णन समृद्ध पर्यावरण का प्रमाण है। उत्तराध्ययन-चूर्णि में राजगृह के बाहर स्थित 18 योजन की अटवी का वर्णन है। औपपातिक-सूत्र के अनुसार चम्पानगरी के वनों में तिलक, बकुल, लचुक, छत्रोप, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीम, कुड़च, कदम्ब, सव्य, पनस, दाड़म,शाल, ताल, प्रियक, प्रियंगु, पुरोगम, राजवृक्ष, नन्दीवृक्ष आदि वृक्षों की सघन पंक्तियाँ थीं। ये वृक्ष पद्मलताओं, नागलताओं, अशोकलताओं, चम्पकलताओं, आम्रलताओं, पीलुकलताओं, वासन्तीलताओं, अतिमुक्तलताओं आदि अनेक प्रकार की लताओं से आवेष्टित रहते थे। हर ऋतु में वृक्ष फलों और फूलों से लदे रहते थे। ऐसी विपुल वन-सम्पदा और वनस्पति-सम्पदा से तत्कालीन समय का पर्यावरण उत्तम बना हुआ था। उस आरोग्य प्रदायिनी जलवायु में लोग स्वस्थ प्रसन्न रहते थे और आजीविका सुलभ थी। वनों में अनेक प्रकार के जीवजन्तु और पशु-पक्षी भी होते थे। जिनमें तोता, मैना, मयूर, कोयल, बत्तख, हंस, कलहंस, सारस, तीतर, बटेर, चकोर, चंदीमुख, चक्रवाक, भंगारक, कोण्डलवा आदि पक्षी तथा हाथी, खरगोश, हिरण, रीछ, मेष, सांभर, चीता, चमरी गाय, बकरी, सुअर आदि अनेक पशु पाये जाते थे। जंगल लोगों की आजीविका के आधारस्तम्भ थे। अनेकानेक व्यवसाय और उद्योग-धन्धे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से वनों से जुड़े थे। आचारांग-सूत्र में बताया गया है कि लकड़ी से अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनती है। श्रमण को ऐसे व्यावसायिक उपयोग के बारे में नहीं बोलना चाहिये। यह निषेध श्रमणों के लिए है। इससे लकड़ी के आर्थिक महत्व का पता चलता है।" उपासकदशांग में हरे-भरे वन काटने और लकड़ी के कोयले बनाने का निषेध किया गया है। खनिज सम्पदा आगम-ग्रन्थों के परायण से पता चलता है कि प्राचीन समय में खनिजों के बारे में आश्चर्यजनक जानकारी थी। आगम ग्रन्थों में अनेक दुर्लभ मणि-रत्नों और खनिजों के उल्लेख से समाज द्वारा खनिज सम्पदा के उपयोग का पता चलता है। पृथ्वीकाय की प्ररूपणा में उत्तराध्ययन (36/73) का यह श्लोक द्रष्टव्य है (53)