________________ सन्दर्भ 1. जैन, प्रेम सुमन (डॉ.) 'प्राकृत भारती' में प्राकृत भाषा एवं साहित्य लेख, प. 5-6 2. जैन, बलभद्र (पं.) का लेख 'मूल संघ की आगम-भाषा शौरसेनी' 'शौरसेनी आगम-साहित्य की भाषा का मूल्यांकन' पुस्तिका में प्रकाशित, पृ. 1-3 3. हीरालाल, सिद्धान्ताचार्य (पं.), शौरसेनी आगम-साहित्य की भाषा का मूल्यांकन (कुन्दकुन्द भारती द्वारा प्रकाशित), पृ.-8 4. जैन, जगदीशचन्द्र (डॉ.) प्राकृत साहित्य का इतिहास, प.-272 5. वही प.-274 एवं देखें, डॉ. हीरालाल जैन लिखित षट्खण्डागम की प्रस्तावना, भाग प्रथम 6. शास्त्री, नेमिचन्द्र (डॉ.) 'प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक - इतिहास' पृष्ठ-204-05 7. वही, प. 213 8... वही, प. 217-18 9. मालवणिया, दलसुख (पं.), आगम युग का जैन दर्शन, प.-231-232 10. देवेन्द्र मुनि (आचार्य) आगम साहित्य : मनन और मीमांसा' प.-580-81 11. शास्त्री, नेमिचन्द्र (डॉ.) 'प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' पृष्ठ 226-27 12. शास्त्री, नेमिचन्द्र (डॉ.) 'प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक * इतिहास' पृष्ठ 229 13. कुन्दकुन्द, आचार्य, प्रवचनसार 1.87 14. शास्त्री, नेमिचन्द्र (डॉ.) 'प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' पृष्ठ 232 एवं आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, पृ.-590 15. प्रेमी, फूलचन्द जैन (डॉ.) मूलाचार एक परिचय, जिनवाणी जैनागम ... विशेषांक, अप्रेल-2002, पष्ठ-495 (31)