________________ के निवासी वट्टकेर दिगम्बर परम्परा में मूल संघ के प्रमुख आचार्य थे। मूलाचार में उन्होंने श्रमण आचार संहिता का सुव्यवस्थित, विस्तष्त एवं सांगोपांग विवेचन किया है। इस ग्रन्थ न बारह अधिकार हैं और 1252 गाथाएँ हैं। भगवती आराधना : विक्रम की तीसरी शताब्दी में हुए आचार्य शिवार्य के इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ में मुख्यतः श्रमणाचार की चर्चा है। इसमें सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप की आराधनाओं का स्वरूप और विश्लेषण है। इसके टीकाकार श्री अपराजित सूरि ने अपनी टीका के अन्त में इसका नाम आराधना टीका दिया है। विशेष तौर पर अन्तिम समय की आराधना (मरणसमाधि या समाधिमरण) की विधि और महिमा का इसमें वर्णन है। इसमें 2166 गाथाएँ हैं, जो 40 अधिकारों में वर्गीकृत हैं। कार्तिकेयानुप्रेक्षा : इसमें 497 गाथाएँ हैं। इसमें 12 अनुप्रेक्षाओं (भावनाओं) के अतिरिक्त सप्त तत्व, जीव समास, मार्गणा, द्वादशव्रत, दान और उसके प्रकार, धर्म के दस प्रकार, सम्यक्त्व के आठ अंग, बारह प्रकार के तप, ध्यान आदि का वर्णन भी है। ____ इन ग्रन्थों के अतिरिक्त गोम्मटसार, लब्धिसार, चारित्र-लब्धि, त्रिलोकसार, द्रव्य संग्रह, जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति संग्रह, धर्म रसायन, आराधना सार, तत्व सार, दर्शन सार, सिद्धान्त सार, वसुनन्दी श्रावकाचार, श्रुतस्कन्ध, निजात्माष्टक, छेद पिण्ड, भाव त्रिभंगी, आश्रव त्रिभंगी, अंग पण्णत्ति, कल्लाणा लोयणा, ढाढ़सी गाथा, छेद शास्त्र आदि अनेक छोटे-बड़े ग्रन्थों और सूत्रों को आगम तुल्य स्थान प्राप्त है। इन ग्रन्थों का अनुयोग दृष्टि से भी वर्गीकरण प्राप्त होता है।" चार अनुयोग 1. चरणकरणानुयोग : इसमें आचार पक्ष को स्पष्ट करने वाले ग्रन्थों को लिया जाता है। अर्थशास्त्र के अन्तर्गत उपभोक्ता के व्यवहार, उत्पादन, वितरण और उपयोगिता के सिद्धान्तों के अध्ययन में चरणकरणानुयोग का महत्व है। 2. धर्मकथानुयोग : धर्म और अध्यात्म के साथ-साथ तत्कालीन समय के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन का जीवन्त वर्णन इस अनुयोग में वर्गीकृत आगमों में मिलता है। 3. गणितानुयोग : गणित और गणितीय सूत्रों के बिना अर्थशास्त्र का अध्ययन पूरा नहीं हो सकता है। बहत्तर कलाओं में गणित की गणना भी है। अनेक (28)