________________ आवश्यक-सूत्र को छोड़ते हुए ऊपर वर्णित इकतीस आगम तथा दस प्रकीर्णक, जीत-कल्प, महानिशीथ, आवश्यक-नियुक्ति और पिण्ड-नियुक्ति को सम्मिलित किया जाता है।" प्रकीर्णक आगम साहित्य का किंचित परिचय यहाँ समीचीन होगा। क्योंकि आगमों को व्यापक रूप से समझने के लिए प्रकीर्णकों का अध्ययन आवश्यक है। नन्दी-सूत्र के टीकाकार आचार्य मलयगिरी के अनुसार तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट श्रुत के आधार पर श्रमण प्रकीर्णकों की रचना करते हैं अथवा श्रमणों की श्रुताधारित धर्मकथाओं/धर्मोपदेशों से रचित कृतियाँ प्रकीर्णक कहलाती हैं। माना जाता है कि भगवान महावीर के तीर्थ में चौदह हजार प्रकीर्णक थे। वर्तमान में दस प्रकीर्णक माने जाते हैं। कुछ अन्य प्रकीर्णक भी माने जाते हैं। इनमें नाम और क्रम भेद भी हैं। प्रकीर्णकों का परिचय यहाँ दिया जा रहा है। 1. चतुःशरण : इसमें चार शरणों को उत्कृष्ट और कल्याणकारी बताया गया है - अरहन्त, सिद्ध, साधु और सर्वज्ञ प्ररूपित धर्म। अन्तिम 63वीं गाथा में वीरभद्र का उल्लेख होने से इसे वीरभद्र रचित माना जाता है। 2. आतर प्रत्याख्यान : सत्तर गाथाओं के इस ग्रन्थ के रचयिता भी वीरभद्र हैं। मरण (बाल, बाल-पण्डित और पण्डित) से सम्बन्धित सामग्री होने से इसे अन्तकाल प्रकीर्णक भी कहा जाता है। 3. महाप्रत्याख्यान : 142 गाथाओं में त्याग-प्रत्याख्यान के स्वरूप और महिमा का वर्णन है। 4. भक्त-परिज्ञा : वीरभद्र रचित इस ग्रन्थ में 172 गाथाएँ हैं। 5. तन्दल वैचारिक : इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से गर्भ के विषय में सामग्री मिलती है। इससे पता चलता है कि प्राचीन समय के अध्यात्म मनीषी आश्चर्यजनक .. वैज्ञानिक जानकारी रखते थे। इसमें 139 गाथाएँ हैं। 6. संस्तारक : मृत्यु संसार की अटल नियति है। समाधि मरण से उसे मंगलमय बनाया जा सकता है। समाधि मरण के लिए संस्तारक यानि संथारा आवश्यक है। ग्रन्थ की 123 गाथाओं में संथारे की विधि और महत्व पर प्रकाश डाला गया है। 7. गच्छाचार : इसमें 137 गाथाएँ हैं। गाथा 135 के अनुसार यह ग्रन्थ महानिशीथ, बृहत्कल्प और व्यवहार सूत्रों के आधार पर लिखा गया। इसमें गच्छ अर्थात् (17)