Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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अरुंधती
प्राचीन चरित्रकोश
अर्चि
था। इस कारण, इसे विवाहसुख प्राप्त हुआ (भ. वि. | अरुंधती के कठिन तप की परीक्षा लेने, शंकर ब्राह्मण का ब्राह्म. २१)।
वेश ले कर भिक्षा मागने पधारे । पास में कुछ न होने के ३. मेधातिथि मुनि की कन्या । मेधातिथि ने ज्योति- | कारण, इसने कुछ (लोहे के) बेर उसे दिये । ब्राह्मण ने टोम नामक यज्ञ किया। उस समय यह यज्ञकुंड से उत्पन्न | उसे पकाने के लिये कहा, तब इसने उन्हें पकने के लिये हुई। पूर्वजन्म में यह ब्रह्मदेव की संध्या नामक मानस
अग्नि पर रखा तथा अनेक विषयों पर उस ब्राह्मण के साथ कन्या थी । चंद्रभागा नदी के तट पर तपोरण्य में, मेधातिथि | चर्चा प्रारंभ की। चर्चा होते होते बारह वर्ष कब व्यतीत के घर यह बडी होने लगी। पाँच साल के उपरान्त, जब हो गये, इसका पता तक नहीं चला। हिमालय गये सप्तर्षि यह एक बार चंद्रभागा नदी पर गयी थी, तब ब्रह्मदेव ने | फलमूल ले कर वापस लौट आये, तब शंकर ने प्रगट हो विमान में से इसे देखा तथा तत्काल मेधातिथि से मिल | कर, अरुंधती की कडी तपश्चर्या का वर्णन उनके पास कर, इसे साध्वी स्त्रियों के संपर्क में रखने के लिये कहा। किया, तथा उसकी इच्छानुसार, वह तीर्थ पवित्र स्थान ब्रह्मदेव के कथनानुसार, मेधातिथि ने सावित्री के पास | हो कर प्रसिद्ध होने का वरदान दिया (म. श. ४८)। जा कर कहा, 'माँ ! मेरी इस कन्या को उत्तम शिक्षा दो।' आकाश में सप्तर्षिओं में वसिष्ठ के पास इसका उदय सावित्री ने उसकी यह प्रार्थना मान्य की। इस प्रकार होता है । इसका पुत्र शक्ति (ब्रह्माण्ड ३.८.८६.८७)। सात वर्ष बीत गये । बारह वर्ष की आयु पूर्ण होने के ३. दक्ष एवं असिक्नी की कन्या तथा धर्म की दस पश्चात्, एक बार यह, सावित्री तथा बहुला के साथ मानस- | पत्नीओं में से एक (दक्ष तथा धर्म देखिये)। पर्वत के उद्यान में गई। वहाँ तपस्या करते हुए वसिष्ठ अरुपोषण-(सो.) भविष्य के मतानुसार मिहिरार्थ ऋषि दृष्टिगोचर हुए । वसिष्ठ एवं अरुंधती का परस्पर दृष्टि
का पुत्र । इसने ३८,००० वर्षों तक राज्य किया । मिलन होते ही दोनो को कामवासना उत्पन्न हुई। तथापि
अरुरु-अनायुषा का पुत्र । इसका पुत्र धुंधु । मनोनिग्रह से दोनो अपने अपने आश्रम में गये । सावित्री
अर्क-(सो. नील.) पूरुज का पुत्र । को यह ज्ञान होते ही, उसने इन दोनों का विवाह करा
२. रामसेना का एक वानर ( वा. रा. यु. ४)। दिया (कालि. २३)।
३. आठ वसुओं में से एक (भा. ६.६.११)। वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर के मैत्रावरुणी वसिष्ठ की
मर्कज:-बलीह देखिये। पत्नी (म. स.११.१३२५ व. १३०.१४)। इसका दूसरा
अर्कपर्ण--कश्यप तथा मुनि के पुत्रों में से एक । नाम अक्षमाला भी था (म. उ. ११५.११) । अरुंधती
इसका नामांतर तृष्णप है। ने स्वयं, 'अरुंधती' शब्द की व्युत्पत्ति, निम्न प्रकार बताई
अर्कसावार्ण-नवम मनु (मनु देखिये)। है। यह वसिष्ठ को छोड, अन्य कहीं भी नहीं रहती तथा उसका विरोध नहीं करती (म. अनु. १४२.३९ कुं.)।
अष्टिमत्-(सो.) भविष्य के मतानुसार वैकर्तन कमल चुराने के लिये शपथ लेने के प्रसंग में, कमल
| का पुत्र । इसने ४१०० वर्षों तक राज्य किया । न चोरने के लिये इसने प्रतिज्ञा की है (म. अनु. १४३.
अर्गल काहोर्डि-एक आचार्य (क. सं. २५.७ )। ३८ कुं.)। ऋषियों द्वारा धर्मरहस्य पूछे जाने पर, श्रद्धा, |
। अर्चत् हैरण्यस्तूप-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१४९)। आतिथ्य तथा गोशंगस्नान का माहात्म्य, इसके द्वारा
- मंत्र में भी इसका निर्देश है (ऋ..१०.१४९.५)। वर्णन किये जाने की पुरानी कथा, भीष्म ने धर्म को कथन / अर्चनानस आत्रेय-सूक्तद्रष्टा (र. ५. ६३, ६४; की है (म. अनु.१९३.१-११ कुं.)
८.४२)। इसे मित्रावरुणों ने सहायता की (ऋ. ५.६४. यह अत्यंत तपस्वी तथा पतिसेवापरायण थी। इसी | ७) । श्यावाश्व के साथ अथर्ववेद में इसका उल्लेख है कारण, अग्निपत्नी स्वाहा अन्य छः ऋषिपत्नीओं का रूप (अ. वे. १८.३.१५)। परंतु यह श्यावाश्व का पिता था धारण कर सकी, पर इसका रूप धारण न कर सकी | (पं. ब्रा. ८.५.९; श्यावाश्व देखिये)। (म. व. २७७.१६ कुं.)।
अर्चि-(स्वा. उत्तान.) वेन राजा के देहमंथन से एकबार, इसे बदरपाचनतीर्थ पर रख कर, सप्तर्षि | मिथुन उत्पन्न हुआ। उस मिथुन में की यह स्त्री। यह हिमालय में फलमूल लाने गये । तब बारह वर्षों तक | उस मिथुन का पुरुष पृथुराजा की पत्नी बनी । यह लक्ष्मी अवर्षण हुआ। तब सब ऋषि वहीं बस गये । इधर | का अवतार थी। (भा. ४.१५.५ पृथु देखिये)।
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