Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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बरुग्वत्
प्राचीन चरित्रकोश
अरुंधती
अरुग्वत्-(सो. कुरु.) विदूरथ तथा संप्रिया का तरह ही तुम भी गायत्री के उपासक हो, इसलिये भला पुत्र (म. आ. ९०.४२)। इसका पुत्र परिक्षित् । इसकी | तुम हमारे पक्ष के कैसे नहीं ? यह सुन, इसने देवताओं पत्नी अमृता।
की उपास्य देवी गायत्री का जाप छोड दिया। इससे अरुज-रावणपक्षीय राक्षस | यह बिभीषण द्वारा | देवी ने संतप्त हो कर लाखों भौंरे उत्पन्न कर उन्हें इस पर मारा गया (म. व. २६९.२)।
छोडा, तथा बिना युद्ध किये ही सेनासहित इसे मार अरुण--सृष्टद्युत्पत्ती के समय ब्रह्मदेव के मांस से | डाला (दे. भा. १०.१३)। उत्पन्न ऋषि । यह ब्रह्मदेव का पुत्र था (ते. आ. १.२३. ६. (सू. इ.) हर्यश्व को दृषद्वती से उत्पन्न पुत्र ।
निबंधन तथा त्रिबंधन इसके नामांतर है। २. पंचम मनु के पुत्रों में से एक ।
७. नरकासूर का पुत्र । नरकासूर को मारने पर, यह ३. दनु तथा कश्यप का पुत्र ( भा. ६.६)।
अपने छः भाइयों समेत कृष्ण पर टूट पड़ा। उस समय ४. विनता तथा कश्यप का पुत्र । अनूरू तथा विपाद |
कृष्ण ने इसके सहित इसके छः भाईयों को मार डाला। इसके नामांतर है, क्यों कि, जन्म से ही इसे पैर नही थे।
। ८. धर्मसावर्णि मन्वन्तर में होनेवाले सप्तर्षियों में से विनता की सौत कद्र को उनके साथ ही गर्भ रहा था, परंतु | उसके पुत्रों को चलते फिरते देख, विनता अपने दो अंडों
अरुण आट-सर्पयज्ञ में का अच्छावाक नामक ऋत्विज में से एक नो फोडा। उसमें से कमर तक शरीरवाला पुत्र
| (पं. बा. २५.१५)। निकला । बाहर आते ही, यह जान कर कि, सौत-मत्सर
अरुण औपवेशि-एक आचार्य । यह उपवेशी का के कारण इसकी यह दशा हुई है, इसने मां को शाप दिया | शिष्य था तथा इसका शिष्य उद्दालक था (बृ. उ. ६.५. कि, तुम्हे ५०० वर्ष तक सौत की दासी बन कर रहना
३)। अग्न्याधान के समय वाग्यत होना चाहिये, यह पडेगा। परंतु, दूसरे अंडे को परिपक्व होने दिया तो दूसरा
बताने के लिये, इस वृद्ध आचार्य की आख्यायिका दी गयी पुत्र दासता से तुम्हे मुक्त करेगा, ऐसा उःशाप कहा (म. है । सत्यपालन के लिये मौन रहना श्रेयस्कर है, ऐसा इसभा. १४, अनु. २०)। आगे चल कर, इसके छोटे भाई का तात्पर्य है (श. बा. २. १. ६. २०; तै. सं. ६. १. गरुड ने इसे पूर्व.भाग में जा कर रखा। इसने अपने | ९. २, ४. ५. १; ते. बा. २. १.५. ११)। विख्यात योगबल से, संतप्त सूर्य का तेज निगल लिया। उसी समय | उद्दालक आरुणि एसका पुत्र है । यह उपवेशि गौतम का से देवताओं के कहने से, सूर्य का सारथी होना इसने शिष्य तथा राजपुत्र अश्वपति का समकालीन था (श. ब्रा. स्वीकार किया (म. आ. परि. १.१४)। कश्यप तथा । १०. ६.१.२)। ताम्रा की कन्या श्येनी इसकी भार्या थी। उससे इसे | ___ अरुण वैतहव्य-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. ९)। संपाति,- जटायु तथा श्येन आदि पुत्र हुए (म. आ. अरुणा-कश्यप तथा प्राधा की कन्या (म. आ. ६०-६१)। निर्णयसिंधु तथा संस्कार कौस्तुभ में इसके | ६०)। अरुण स्मृति का उल्लेख है (C.C.)।
अरुणि-ब्रह्ममानसपुत्र । यह विरक्त था (भा. ४. ५. विप्रचित्ती के वंश का एक दानव । इसने हजारों | ८)। वर्षों तक गायत्रीमंत्र का जाप कर तप किया, तथा 'युद्ध में | अरुद्ध-(सो. द्रुह्यु.) वायुमतानुसार सेतुपुत्र ( अंगार
अरुद्ध-(सा. द्रुखु.) वायुमतानुसार स मृत्यु न हो' ऐसा वरदान ब्रह्मदेव से मांग लिया। आगे चल, मदोन्मत्त हो कर अपना निवासस्थान पाताल छोड
| अरुंधती-स्वायंभुव मन्वन्तर में, कर्दम प्रजापति को कर, यह भूमि पर आया तथा इंद्रादि देवताओंको युद्ध का | देवहूति से उत्पन्न कन्या। यह वसिष्ठ को ब्याही गयी थी आव्हान देने दूत भेजा। उसी समय आकाशवाणी हई | (३. २३, २४; मत्स्य. २०१. ३०)। कि, जब तक यह गायत्री का त्याग नहीं करेगा, तब तक २. कश्यप की कन्या । इसे नारद तथा पर्वत नामक इसे मृत्यु नहिं आयेगी। तब देवताओं ने बृहस्पति को | दो भाई थे। नारद द्वारा यह वसिष्ठ को ब्याही गयी थी गायत्री का त्याग करवाने भेजा । बृहस्पति को आया देख, (वायु. ७१. ७९. ८३, ब्रह्माण्ड. ३.८.८६; लिङ्ग. १. 'मैं आपके पक्ष का न होते हुए भी आप यहां कहाँ निकल | ६३. ७८-८०, कुर्म. १. १९. २०; विष्णुधर्म. १. पडे' ऐसा इसने पूछा । तब बृहस्पति ने कहा कि, हमारे ११७) । इसने वसिष्ठ की प्राप्ति के लिये, गौरी-व्रत किया
प्रा. च.५]