Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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अबुधारा
प्राचीन चरित्रकोश
अराल
का
अंबुधारा--दक्षसावर्णि मन्वन्तर में के ऋषभ अवतार | अयुतायु-(सू. इ.) सिंधुद्वीप का पुत्र (भा. की माता (भा. ८.१३)। _अंबुवीच--मगधदेश के राजगृह नगर का राजा।। २. (सो. कुरु.) विष्णु के मतानुसार आरावी का पुत्र । यह सब प्रकार से पंगु रहने के कारण, प्रधान महाकणि ३. (मगध. भविष्य.) भविष्य के मतानुसार अर्णव का अत्यंत प्रबल हो गया। परंतु दैवयोग से वह राज्य | पुत्र । इसने १००० वर्षों तक राज्य किया। भागवत, वायु, हडप न सका (म. आ. १९६.१७-२२)।
मत्स्य तथा ब्रह्माण्ड के मतानुसार श्रुतश्रवस् का पुत्र परंतु अंभृण--इसकी कन्या वाच (वाच देखिये)। विष्णु के मतानुसार श्रुतवान् का पुत्र । अयुतायुत पाठभेद
अंभोद--विश्वामित्र का पुत्र (म. अनु. ७.५९)। • अय--स्वारोचिष मन्वन्तर का प्रजापति । यह वसिष्ठ । अयुताश्व--(सू, इ.) भविष्य के मतानुसार सिंधुका पुत्र था।
द्वीप का पुत्र । यह वैष्णव था। २. अगस्त्य गोत्र का मंत्रकार ।
अयोज्य--एक ऋषि (वायु. ५९ ९०-९१)। - ३. तुषित नामक देवगणों में से एक ।
इसका अपास्य नामांतर था (ब्रह्माण्ड. २.३२.९८४. यजुर्वेदी ब्रह्मचारी।
१००)। मयःशिरस्--कश्यप तथा दनु का पुत्र ।
अयोबाहु--धृतराष्ट्र के पुत्रों में से एक। अयतंस--(सो.) भविष्यमतानुसार परातंस का पुत्र । ___अयोभुज--धृतराष्ट्रपुत्र । इसका वध भीम ने किया मयतायन--विश्वामित्र कुल का एक गोत्रकार। (म. द्रो. १३२.१,३५* ; पंक्ति,)। मयति--(सो.) नहुष का पुत्र (म. आ. ७०.२८)। अयोमुख--कश्यप तथा दनु का पुत्र ।
अयस्थूण--शौल्बायन जिनका अध्वर्यु था, उन्ही- अयोमखी--एक राक्षसी । सीता को ढूंढते हुए राम का यह गृहपति था । इसीने शौल्बायन को विशिष्ट यज्ञे- लक्ष्मण जब मातंगाश्रम की ओर गये, तब वहाँ लक्ष्मण के साधन का उपयोग सिखाया (श. ब्रा. ११.४.२.१७)। समीप जाकर इसने लक्ष्मण का वरण करने की इच्छा 'मयस्मय--रवारोचिष मनु का पुत्र ।
प्रदर्शित की। तब लक्ष्मण ने शूर्पणखा के समान इसकी अयस्य--अजस्य देखिये ।
अवस्था की। तब इसने वहाँ से पलायन किया (वा. रा. मयाप्य--वायुमतानुसार अयास्य का नाम। अर. ६९)।
अयास्य आंगिरस--सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९.४४-४६; अरजा--उशनस् शुक्र की कन्या । इसका कोमाय १०.६७-६८)। अंगिरस को स्वराज् से उत्पन्न लड़का। दंड राजा ने नष्ट किया था । इस लिये, इसके पिता ने इसका पुत्र कितव (ब्रह्माण्ड. ३.१)। राजसूय यज्ञ में इसे दंडकारण्य में ही भागवाश्रम के पास के सरोवर पर यह उद्गाता था । उस यज्ञ में शुनःशेप को बलि देने | रहने के लिये कहा । तदनंतर यह निष्पाप हूई (वा. रा. .का था (पं. बा.११.८.१०:१४.३.२२; १६.१२.४; सां. | उ. ९१; पन. सृ. ३४)। ना. ३०.६) । धर्मकृत्य में, प्रमाण के लिये इसका बहुत | अरण्य--रैवत मनु का पुत्र । से स्थानों पर उल्लेख आता है। यह आभूति त्वाष्ट्र का
आमूात त्वाष्ट्र का । २. हिरण्याक्षानुयायी असुर । इसका वध कार्तिकेय ने शिष्य है (बृ. उ. १.३.८:१९; २.६.३, ४.६.३)। किया ( पन. सु. ७५)। शार्यात मानव के यज्ञ में यह उद्गाता था (जै. उ. बा.|
अरप--भृगु गोत्रीय मंत्रकार । २.७.२; १०; ८.३)।
अररु--एक दैत्य (तै. सं. १.१.१९)। ।' अयुत--(सो. जह.) राधिका का पुत्र ।
अराविंद--(सो.) भविष्य के मतानुसार चित्ररथ का अयुताजित्--(सो. भज.) भागवतमतानुसार | पुत्र । सात्वतपुत्र । भजमानस की दूसरी स्त्री से उत्पन्न तीन पुत्रों अराचीन--(सो. पूरु.) जयत्सेन तथा सुषुवा का में कनिष्ठ ।
| पुत्र । इसकी पत्नी का नाम मर्यादा तथा पुत्र का नाम अयुतानायिन--(सो. पूरु.) महाभौम तथा सुयज्ञा अरिह था (म. आ. ९०.१७-१८)। का पुत्र । इसकी स्त्री भासा । इसका पुत्र अक्रोधन (म. अराल दात्रय शौनक--दृति ऐद्रात शौनक का भा. ९०.१९)।
शिष्य । इसका शिष्य शूष (वं. वा. २)। ३१