Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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अंबा
प्राचीन चरित्रकोश
अंबुक
तब उन्होंने इसे इसके निश्चय से परावृत्त करने का प्रयत्न | देख, अंबा ने अग्नि में प्रवेश कर, देहयाग किया किया । परंतु वह निष्फल हुआ और अंबा वहीं तप करने | (म. उ. १८८)। लगी। कुछ समय बाद होत्रवाहन नामक एक राजर्षि उस |
___ महाभारत के कुम्भकोणम् प्रति में, उपरोक्त कथा दूसरे आश्रम में आये । वे अंबा के मातामह थे । अंबा की
प्रकार दी गयी है, जो इस प्रकार है --अंबा की उत्कृष्ट यह स्थिति देख वे अत्यंत दुखित हुए। अपनी नतिनी
तपश्चर्या देख कर कार्तिकस्वामी ने प्रसन्न हो कर उसे एक का दुःख दूर होने के लिये, उन्होंने भीष्म के गुरु परशुराम
प्रासादिक तथा दिव्य माला दे कर बताया कि, जो इस के द्वारा भीष्म का परिपत्य कर, उसे अंबा को स्वीकार
माला को धारण करेगा वह निःसंशय भीष्म का वध करने के लिये बाध्य करने का निश्चय किया । तदनुसार
करेगा। अंबा ने वह माला ली। वह देशदेशांतर में अपनी नतिनी को लेकर, वे परशराम के पास जाने ही
यह पूछते हुए विचरण करने लगी 'कोई क्षत्रिय, इस वाले थे कि, परशुराम का शिष्य अकृतव्रण वहाँ आ पहुंचा
माला को धारण कर, भीष्म को मारने में समर्थ है ?" तथा उसने बताया कि, परशुराम इसी आश्रम की ओर
परंतु भीष्म का वध करने की इच्छा रखनेवाला एक भी आ रहे हैं । इस लिये होत्रवाहन परशुराम से मिलने के
क्षत्रिय उसे नहीं मिला । अंत में पांचालराज द्रपद के लिये वहीं रुक गये (म. उ. १७३-१७६)।
अस्वीकार करने पर भी, अंबा राजमहल के दरवाजे पर कुछ दिनों बाद, परशुराम उस आश्रम में आ पहुंचे । माला फेंक कर चली गयी। तब द्रुपदने वह माला उठाकर अंबा का वृत्तांत जान कर उसे दुःखमुक्त करने का उन्होने अपने प्रासाद में रख ली। आगे चल कर शिखंडी ने उसी वचन दिया तथा भीष्म के पास संदेश भिजवाया कि, | माला के योग से भीष्म का वध किया (म. आ. परि. अंबा का स्वीकार करो अथवा युद्ध करने के लिये तयार | १.५५)। हो जाओ। भीष्म ने आजन्म ब्रह्मचर्य का अपना निश्चय
___ अंबायवीया-सत्यलोक की एक अप्सस । परशुराम के पास भिजवाया तथा स्वयं युद्ध के लिये तैयार
___ अंबालिका--काशीराज को तीन कन्याओं में से हो गये। आगे चलकर कुरूक्षेत्र में दोनों का भीषण युद्ध
कनिष्ठ तथा विचित्रवीर्य की स्त्री ( अंबा देखिये)। पति हुआ, जिस में कोई भी पराजित न हुआ तथा युद्ध रोक
से इसे संतति नहीं हुई। पति की मृत्यु होने पर सास दिया गया।
सत्यवती तथा देवर भीष्म के अनुमोदन पर, इसने व्यास __ अंबा को यहाँ भी निराशा ही मिली परंतु भीष्म से | से पुत्रप्राप्ति करा ली परंतु गर्भधारणा के समय भयभीत बदला लेने का निश्चय इसने बिलकुल नहीं छोड़ा। भीष्म | हो कर, यह फीकी पड़ गई। अतएव इसका पुत्र भी फीके का वध करने के लिये इसने शंकर की उपासना (कठोर | सफेद रंग का हुआ। इस लिये उसका नाम पांङ रखा तपस्या) प्रारंभ की। गंगा को इसका निश्चय मालूम गया (म. आ. १००.१७-१८; सत्यवती देखिये)। होते ही, उसने अंबा को तप से परावृत्त करने का बहुत | अंबिका--काशीराज की तीन कन्याओं में से मँझली प्रयत्न किया। परंतु अंबा ने गंगा की एक न सुनी । तब तथा विचित्रवीर्य की स्त्री. ( अंबा देखिये)। पति से गंगा ने उसे श्राप दिया कि, 'तू अर्धाग से बरसाती नदी | संतति न होने के कारण इसने व्यास से पुत्र प्राप्ति करा ली। होगी ।' अंबा फिर भी अपने निश्चय पर अटल रही । रति के समय आँखे बंद रखने के कारण अंधे धृतराष्ट्र का (म. उ. १८७)।
जन्म हुआ। इसे कौसल्या भी नाम दिया गया था । फिर कुछ कालोपरांत, महादेवजी उसकी तपश्चर्या से संतुष्ट
से अच्छा पुत्र हो, इस लिये सास ने इसे फिर से व्यास हो, वरदान देने को तयार हुए। अंबा ने भीष्म को मार
के पास जाने को कहा। व्यास का स्वरूप मन में आते ही
यह मन में घबरायी, तथा इसने सास को यों ही, हां कह डालने की अपनी इच्छा बतायी । तब महादेवजी ने
दिया। परंतु ऐन समय पर, एक दासी को व्यास के पास वरदान दिया कि, इस जन्म में यह संभव नहीं है परंतु अगले जन्म में द्रुपद के घर पहले कन्या रूप में जन्म लेने |
| भेज दिया, उससे विदूर का जन्म हुआ (म. आ. १०५के पश्चात् तुझे पुरुषत्त्व प्राप्त होगा। तू शिखंडी नाम से प्रसिद्ध |
१०६)। होकर भीष्म का वध करेगी । इतना वरदान दे कर, । २. रुद्रपत्नी (श. ब्रा. २.५.३.९)। शंकरजी अंतर्धान हो गये। अपना मनोरथ पूर्ण हुआ। अंबुक-ब्रह्मधान का पुत्र ।