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अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011
instincts. For Pythagorus had assured them that the total number of souls in the universe is constant".
प्राचीन मिश्र में निम्नकोटि के जीवों के प्रति दया, मांसभक्षण निषेध एवं ब्रह्मचर्य पूजा का उल्लेख आर्चविशप ह्वेतली ने इस प्रकार किया है
"In Egypt there are hospitals for superannuated cats and the most loathsome insects are regarded with tenderness;.....," "Chastity, abstinence from animal food, ablutions, long and mysterious ceremonies of preparations of initiation, were the most prominent features of worship........."
श्री रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार इस्लामी रहस्यणद (तसव्वुफ) के प्रमुख उन्त्रयक सन्त अबुलअला अलमआरी (1507 ई.) भी इन्हीं प्रभाव क्षेत्रों के कारण शाकाहारी था। वह दूध, मधु और चमड़े का प्रयोग नहीं करता था। पशु-पक्षियों के लिए उसके हृदय में असीम सम्वेरणा एवं अनुकम्पा का भाव था। वह नैतिक नियंत्रों का सभल प्रचारक था। वह स्वयं भी ब्रह्मचर्य एवं तपस्वियों के आचरणशास्त्र का पालन करता था।
श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के कथनानुसार परमअर्हत् के विरद से विभूषित एवं चौदह हजार एक सौ चालीस मंदिरों का निर्माण कराने वाले सम्राट् कुमारपाल ने जैनाचार्य श्री हेमचन्द्र की मंत्रणा पर राज्य में पशु हत्या पर रोक लगवा दी थी। डॉ. मोहनचन्द के अनुसार सम्राट् कुमारपाल ने एक अर्धमृत बकरे के कारुणिक दृश्य को देखकर अपने राज्य में किसी भी पशु को चोट पहुंचाने पर रोक लगवा दी थी। उन्होंने 1160 ई. में एक विशेष आज्ञा निकालकर 14 वर्षों के लिए राज्य में पशु-बलि, मुर्गों अथवा अन्य पशु-पक्षियों की लड़ाई एवं कबूतरों की दौड़ पर प्रतिबंध लगवा दिया। राज्य में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह जन्म से कितना भी हीन क्यों न हो, वह अपनी जीविका के लिए किसी भी प्रकार के प्राणी की हत्या नहीं कर सकता था। इस प्रकार की राजाज्ञा से प्रभावित होने वाले कसाइयों की जीविका की क्षतिपूर्ति के लिए राज्यकोष से तीन वर्षों के लिए धन देने का भी विशेष प्रबन्ध किया गया जिससे उनकी हिंसक आदत छूट जाए।
भारत में सर्वधर्म सद्भाव के वास्तविक प्रतिनिधि मुगल सम्राट अकबर की दया तो वास्तव में निस्सीम एवं अनुकरणीय है। अपनी सहज उदारता से 'दीने इलाही' को प्राणवान् कर धर्मज्ञ अकबर विश्व सभ्यता एवं संस्कृति के उन्नायक महापुरुषों की श्रेणी में विराजमान हो गया है। उसकी प्रारंभिक अवस्था में जैन विद्वान् उपाध्याय पद्मसुन्दर जी और तत्पश्चात् मुनिश्री हरिविजय जी का संसर्ग मिल गया था। उपरोक्त संसर्गो और गहन चिंतन ने अकबर को वैचारिक रूप में अनेकान्तवादी बना दिया था। जनश्रुतियों में तो अकबर पर जैन सम्राट होने का भी आरोप लगाया जाता है। श्री रामधारी सिंह दिनकर ने एक रोचक लोककथा का उल्लेख करते हुए 'संस्कृति के चार अध्याय' में यह जानकारी दी है कि नरहरि नामक हिन्दी कवि ने गौओं की ओर से निम्नलिखित छप्पय अकबर को सुनाया था: