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अनेकान्त 64/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2011
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त
-डॉ. रमेशचन्द जैन चन्द्रगुप्त का कुल
चन्द्रगुप्त के पूर्वजों के विषय में मतभेद है। हिन्दू ग्रंथों में चन्द्रगुप्त को मगध के नन्दवंश से सम्बन्धित बतलाया गया है। मुद्राराक्षस में उन्हें न केवल मौर्यपुत्र वरन् नन्दान्वय भी लिखा है। क्षेमेन्द्र तथा सोमदेव ने उसे पूर्वनन्द सुत कहा है। मुद्राराक्षस के आलोचक ढुण्डिराज ने लिखा है कि वह मौर्य (नन्द राजा सर्वार्थीसिद्धि तथा वृषक (शूद्र) की कन्या मुरा का पुत्र था। मध्यकालीन शिलालेखों के अनुसार मौर्यवंश सूर्यवंशियों से सम्बन्धित था। सूर्यवंश के एक राजकुमारर मान्धातृ से मौर्यवंश का उद्भव हुआ था। जैन ग्रंथ परिशिष्ट पर्वन् में कहा गया है कि चन्द्रगुप्त मयूरपोषकों के गांव के मुखिया की पुत्री से उत्पन्न हुआ था। महावंश के अनुसार चन्द्रगुप्त उस क्षत्रिय वंश का था, जो बाद में मौर्य कहलाने लगा।' दिव्यावदान में चन्द्रगुप्त तथा/ दिव्यावदान में चन्द्रगुप्त के पुत्र बिन्दुसार ने अपने को क्षत्रिय मूर्धाभिषिक्त घोषित किया है। उसी ग्रंथ में बिन्दुसार के पुत्र अशोक ने अपने को क्षत्रिय कहा है। महापरिनिब्बान सुत्त में मौर्यों का विप्पलिवन का शासक और क्षत्रियवंश माना है। इन सब प्रमाणों से यह निश्चित है कि चन्द्रगुप्त क्षत्रिय वंश का था। तात्कालिक परिस्थितियाँ
एण्ड्रोकोट्टस (चन्द्रगुप्त) ने सिकन्दर से मुलाकात की थी। उस समय वह किशोर ही था। चन्द्रगुप्त कहा करता था कि सिकन्दर बड़ी आसानी से समूचे भारतवर्ष पर कब्जा कर सकता था; क्योंकि यहाँ के राजा से उसकी प्रजा उसके दुर्गुणों के कारण घृणा करती थी। अनुमानतः चन्द्रगुप्त ने मगध के अत्याचार भरे शासन को समाप्त करने के लिए भेंट की होगी। किन्तु चन्द्रगुप्त को सिकन्दर औग्रसैन्य (अंतिम नन्द सम्राट) जैसा ही सख्त शासक लगा; क्योंकि उसने भारत के इस किशोर सेनानी का वध किए जाने की आज्ञा में देर नहीं लगाई। बाद में चन्द्रगुप्त ने भारत को यूनान तथा भारत के अत्याचारियों (सिकन्दर तथा औग्रसैन्य) से मुक्त करने का निश्चय किया। चन्द्रगुप्त ने तक्षशिला के एक ब्राह्मण कौटिल्य की सहायता से नन्दवंश के बदनाम राजा को गद्दी से उतार दिया। मिलिन्दपज्ह में लिखा है कि उस समय नन्द की सेना का नायक भद्दसाल (भद्रशाल) था।' चन्द्रगुप्त का शासन
हेमचन्द्र कृत परिशिष्ट पर्वन् से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त महावीर भगवान् की कैवल्य प्राप्ति के 155 वर्ष बाद सिंहासनारूढ़ हुआ। नन्दों और मैसिडोनिनयनों को हराकर