Book Title: Anekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 358
________________ उत्तराध्ययन की सुखबोधा वृत्ति (टीका) का समीक्षात्मक अध्ययन -डॉ. एच. सी. जैन डॉ. इन्दुबाला जैन (डबोक) प्राकृत साहित्य में आगम, चूर्णी, भाष्य, चरित एवं कथा साहित्य लिखे गये। ईसवी पूर्व 5वीं 6ठी शताब्दी से लेकर आज तक साहित्य लिखे जा रहे हैं। उत्तराध्ययन सूत्र पर एक टीका लिखी गयी है जिसे सुखबोध टीका कहा गया है। यह टीका शान्तिसूरि की शिष्यहिता टीका पर आधारित है लेकिन स्वतंत्र रूप से लिखी गयी है। इसे आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने 11वीं शताब्दी में लिखा है। उत्तराध्ययन 36 अध्ययन में वर्णित सूत्रों पर संस्कृत में टीका लिखी है किन्तु साथ में शब्द में व्याप्त कथा आदि की प्राकृत में व्याख्या भी की है। यह ग्रन्थ प्रकाशित है किन्तु इसका हिन्दी अनुवाद एवं शोध कार्य अभी तक नहीं हुआ है। मूल ग्रन्थ के अध्ययन के आधार पर समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है। यह ग्रन्थ 12000 श्लोक प्रमाण है। उत्तराध्ययन सुखबोधावृत्ति के प्रारंभ में तीर्थकर, सिद्ध, साधु एवं श्रुत देवता को नमस्कार किया गया है। इस ग्रन्थ के अन्त में गच्छ, गुरूभ्राता, वृत्तिरचना का स्थान समय आदि का निर्देश भी लेखक के द्वारा किया गया है। इससे ज्ञात होता है कि लेखक ने अपने गुरू भ्राता मुनि चन्द्रसूरि की प्रेरणा से प्रस्तुत वृत्ति की रचना की। इस टीका (वृत्ति) की रचना के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए स्वयं नेमिचन्द्र सूरि (देवेन्द्रगणि लिखते हैं आत्मस्मृतये वक्ष्ये जड़मति संक्षेप रूचि हितार्थयाय। एकैकार्थ निबद्धां वृत्तिं शुभस्य सुखबोधाय॥ बहवर्थाद वृढकृताद् गंभीराद् विवरणात् समुद्धृत्य। अध्यनामुत्तर पूर्वाणांमकेपाठगताम्॥ बौद्धव्यानि यतोडयं, प्रारम्भोगमनिकामात्रम्। अर्थात् मन्दमति और संक्षिप्त रूचि प्रधान पाठकों के लिए मैंने अनेकार्थ गम्भीर विवरण से पाठान्तरों और अर्थान्तरों से दूर रहकर इस टीका की रचना की है। अर्थान्तरों और पाठान्तरों के जाल से मुक्त होने के कारण इस टीका की सुखबोध टीका संज्ञा सार्थक भी है।' इस टीका (वृत्ति) में छोटी-बड़ी सभी मिलाकर 125 प्राकृत कथाएँ वर्णित है। इन कथाओं में रोमांस परम्परा प्रचलित मनोरंजक वृतान्त, जीव-जन्तु, जैन साधुओं के आचार का महत्त्व प्रतिपादन करने वाली, नीति उपदेशात्मक कथाएँ वर्णित हैं। कथानाक रूढ़ियों को प्रतिपादन करने वाली कथाएँ जैसे:- राजकुमारी का वानरी बन जाना, किसी राजकुमारी का हाथी द्वारा भगाकर जंगल में ले जाना ऐसी ही कथाएँ रयणचूडरायचरियं में

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