________________
सर्वार्थसिद्धि में वर्णित निक्षेप
नाम निक्षेप का सहारा लिए बिना मात्र गुणों को देखकर परस्पर में लोकव्यवहार करने पर एक ही व्यक्ति के सहस्रनाम का प्रसंग आ जायेगा, नाम स्मरण नहीं हो पायेंगे, गुणसाम्यता के कारण सभी को जीव, मनुष्य, पुरूष आदि नामों से पुकारने पर लोकव्यवहार भी संभव नहीं हो सकेगा।
स्वर्णपाषाण से ही स्वर्ण मिलता है, दूध से घी बनता है, मिट्टी से कलश का निर्माण होता है इत्यादि विचार द्रव्यनिक्षेप और भावनिक्षेप के भावों को जाने बिना सम्भव ही नहीं है। अत: यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि सकल भारतीय विचार जगत् ने निक्षेप पद्धति को अपनी आत्मा बनाकर लोकव्यवहार का सुन्दर महल रचा है। निक्षेप पद्धति के बिना लोकव्यवहार की कल्पना करना भी अशक्य है। उपसंहार
सर्वार्थसिद्धि जैसे महान् ग्रन्थ के रचनाकर पूज्य आचार्य पूज्यपाद स्वामी के प्रशस्त क्षयोपशम और जैनागम के प्रति दृढ़ सिद्धान्त आस्था का सुपरिणाम है उनकी प्रामाणिक प्रणयन पद्धति। इस आगमनिष्ठ विवेचन के आकाश में चमकते हुए सितारो तो अनगिनत हैं, परन्तु आगमेतर प्रसंग प्रस्तुत प्रकरण में धुंधले रूप में भी नहीं दिखता। ऐसे परम प्रामाणिक, जिनवाणी के प्रकाशक, तत्त्वार्थरहस्य के उद्घाटक महामनीषी के चरणकमलों में अनगिनत प्रणामा। संदर्भ सूची: 1. सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द शास्त्री: सर्वार्थसिद्धिः भारतीय ज्ञानपीठ,दिल्ली,2009 अ. 6 सूत्र
9 पृ. 250 2. प्रो. महेन्द्र कुमार जैन, न्यायाचार्य : तत्त्वार्थवार्तिक (राजवार्तिक): भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली,
2001, अ. 1 सूत्र 5, पृष्ठ 28 3. पं. रतनचन्द जैनः आलापपद्धतिः भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत् परिषद्, लोहारिया (राज.),
2004, सू. 183, पृ. 28 4. सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द शास्त्री: णयचक्को: भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1999, गा, 270,
पृ. 136 5. पं. बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री: तिलोयपण्णत्तिः जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, 2007, अ.
1, गा, 83, पृ. 10 6. सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द शास्त्री: धवलाजी: अमरावती, प्र. सं., पु.1, पृ. 10, पृ. 13, पृ
3, पृ. 14, पृ. 51 7. सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द शास्त्री: धवलाजी, अमरावती, प्र. सं., पृ.4, पृ. 2 8. सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द शास्त्री: सर्वार्थसिद्धिः भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 2009, अ. 1,
सू. 5, पृ. 13-14 9. सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द शास्त्री: धवलाजी, अमरावती, प्र. सं., पु.1 गा. 15 10. सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द शास्त्रीः धवलाजी, अमरावती, प्र. सं., पु.1, पृ. 30-31 11. पं बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री: तिलोयपण्णत्तिः जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, 2007, अ
1, गा. 82, पृष्ठ 10