Book Title: Anekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 376
________________ 88 सर्वार्थसिद्धि में वर्णित निक्षेप है। इन दोनों से निर्णय किया गया पदार्थ निक्षेप में विषय होता है।५ । अभिप्राय यह है कि प्रमाण पूर्ण वस्तु को ग्रहण करता है और नय जानने वाले के अभिप्राय को व्यक्त करता है। नय और प्रमाण से ग्रहीत वस्तु में निक्षेप योजना होती है। निक्षेप योजना अप्रकृत का निराकरण और प्रकृत का निरूपण करने के लिए आवश्यक है। अर्थात् किसी शब्द या वाक्य का अर्थ करते समय उस शब्द का लोक में जितने अर्थों में व्यवहार होता है उनमें से कौन-सा अर्थ वक्ता को विवक्षित है, यह निश्चय करने के लिए निक्षेप योजना की गयी है। इसके द्वारा जहाँ जो अर्थ विवक्षित होता है वह ले लिया जाता है, इससे अर्थ में अनर्थ नहीं हो पाता है। निक्षेप के भेद-प्रभेद एवं उनका स्वरूप मुख्यतया निक्षेप के चार भेद किये गये हैं। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। इनका स्वरूप एवं प्रभेदों का संकलन सर्वार्थसिद्धि के अनुसार किया जाएगा। द्रव्य निक्षेप के दो भेद हैं (i) आगम द्रव्य निक्षेप (ii) नोआगम द्रव्य निक्षेप। पुन:नो आगम द्रव्य निक्षेप के 3 भेद (i) ज्ञायक शरीर (ii) भावि एवं (iii) तद्वयतिरिक्त। पुनः तव्दयतिरिक्त के 2 भेद (i) कर्म एवं (ii) नो कर्म। इसी प्रकार भाव निक्षेप के 2 भेद हैं- (i) आगमभाव निक्षेप एवं (ii) नो आगम भाव निक्षेप। षट्खण्डागम एवं धवलाजी के अनुसार वर्गाणा निक्षेप के प्रकरण में छह भेद कहे गए हैं। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। इन दोनों ग्रन्थों में प्रायः इन छह निक्षेपों के आश्रय से ही प्रत्येक प्रकरण की व्याख्या की गयी है। श्लोकवार्तिक में कहा गया है कि प्रश्न- पदार्थों के निक्षेप अनन्त कहने चाहिए? उत्तर- उन अनन्त निक्षेपों का संक्षेप रूप से चार में ही अन्तर्भाव हो जाता है। अर्थात् संक्षेप से निक्षेप चार है और विस्तार से अनन्त है।” संज्ञा के अनुसार गुणरहित वस्तु में व्यवहार के लिए अपनी इच्छा से की गयी संज्ञा को नाम कहते हैं। जैसे नाम जीव। जीवन गुण की अपेक्षा न करके जिस किसी का 'जीव' ऐसा नाम रखना नाम जीव है। कालकर्म, पुस्तकर्म, चित्रकर्म और अक्षनिक्षेप आदि में 'वह यह है' इसप्रकार स्थापित करने को स्थापना कहते हैं। जैसे- स्थापना जीव। अक्षनिक्षेप आदि में यह 'जीव है' या 'मनुष्य जीव है' ऐसा स्थापित करना स्थापना जीव है। जो गुणों के द्वारा प्राप्त हुआ था या गुणों को प्राप्त हुआ था अथवा जो गुणों के द्वारा प्राप्त किया जायेगा या गुणों को प्राप्त होता उसे द्रव्य कहते हैं। जैसे- द्रव्यजीव। द्रव्य जीव के दो भेद हैं- आगमद्रव्यजीव और नोआगमद्रव्यजीव। इनमें से जीव विषयक शास्त्र को जानता है किन्तु वर्तमान में उसके उपयोग से रहित है वह आगमद्रव्यजीव है। नोआगमजीव के तीन भेद हैं- ज्ञायक शरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त। ज्ञाता के शरीर को ज्ञायक शरीर कहते हैं। जो जीव दूसरी गति में विद्यमान है वह जब मनुष्य भव को प्राप्त करने के लिए सम्मुख होता है तब वह मनुष्य भाविजीव कहलाता है। तद्व्यतिरिक्त के दो

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