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सर्वार्थसिद्धि में वर्णित निक्षेप उसे निक्षेप कहते हैं। अथवा बाहरी पदार्थ के विकल्प को निक्षेप कहते हैं। अथवा अप्रकृत का निराकरण करके प्रकृत का निरूपण करने वाला निक्षेप है।'
उपर्युक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट होता है कि 'नि' उपसर्गपूर्वक शिप् धातु से निक्षेप शब्द बनता है। निक्षेप का अर्थ रखना है। न्यास शब्द का भी यही अर्थ है। आशय यह है कि एक-एक शब्द का लोक में और शास्त्र में प्रयोजन के अनेक अर्थों में प्रयोग किया जाता है। यह प्रयोग कहाँ किस अर्थ में किया गया है, इस बात को बतलाना ही निक्षेपविधि का काम है। निक्षेप की उपयोगिता
संज्ञा, स्वलक्षण आदि के द्वारा उपदिष्ट जीवादि तत्त्वों के संव्यवहार के लिए तथा व्यभिचार की निवृत्ति के लिए निक्षेप प्रक्रिया का निरूपण किया जाता है। जीवादि पदार्थ एवं सम्यग्दर्शन आदि का शब्द प्रयोग करते समय विवक्षा भेद से जो गड़बड़ी होना सम्भव है, उसको दूर करने के लिए निक्षेप का वर्णन किया गया है।
एक ही वस्तु में लोकव्यवहार में नामादि चारों व्यवहार देखे जाते हैं। जैसे- इन्द्र शब्द को भी इन्द्र कहते हैं; इन्द्र की मूर्ति को भी इन्द्र कहते हैं; इन्द्रपद से च्युत होकर मनुष्य होने वाले को भी इन्द्र कहते हैं और शचीपति को भी इन्द्र कहते हैं। किस शब्द का क्या अर्थ है, यह निक्षेपविधि के द्वारा बताया जाता है। ‘स किमर्थः अप्रकृत निराकरणाय प्रकृत निरूपणाय च।' अर्थ- शंका-निक्षेपविधि का कथन किस लिए कहा जाता है? समाधान- अप्रकृत का निराकरण करने के लिए और प्रकृत का निरूपण करने के लिए इसका कथन किया जाता है।
धवलाजी में एक गाथा उद्धृत है, जिससे निक्षेप की उपयोगिता का सम्यगवलोकन किया जा सकता है। यथा
अवगयणिवरणटुं पयदस्स परूवणा निमित्तं च।
संसयविणासणठें तच्चत्थवधारट्ठ॥१५॥ अर्थ- अप्रकृत विषय के निराकरण के लिए प्रकृत अर्थ का कथन करने के लिए, संशय को दूर करने के लिए और तत्त्वार्थ का निश्चय करने के लिए निक्षेप का कथन करना चाहिए।'
___ प्रस्तुत प्रकरण को दृढ़ता प्रदान करते हुए आचार्य वीरसेन स्वामी लिखते हैं कि श्रोता तीन प्रकार के होते हैं- पहला अव्युत्पन्न अर्थात् स्वरूप से अनजान, दूसरा सम्पूर्ण रूप से विवक्षित पदार्थ को जानने वाला, तीसरा विवक्षित पदार्थ को एकदेश से जाननेवाला। इनमें से पहला श्रोता तो अनजान होने से कुछ भी नहीं जानता। दूसरा विवक्षित पद के अर्थ में सन्देह करता है कि इस पद का कौन-सा अर्थ यहाँ अधिकृत है। अथवा प्रकृत अर्थ को छोड़कर अन्य अर्थ ग्रहण करता है और इस तरह विपरीत समझ बैठता है। दूसरे की तरह तीसरा श्रोता भी या तो सन्देह में पड़ता है या विपीत समझ लेता है। इनमें से प्रथम अव्युत्पन्न श्रोता यदि वस्तु की किसी विवक्षित पर्याय को जानना चाहता है तो उसके लिए प्रकृत विषय की व्युत्पत्ति के द्वारा अप्रकृत का निराकरण करने के लिए भाव निक्षेप का