Book Title: Anekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 371
________________ अनेकान्त 64/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2011 42. अमितगतिश्रावकाचार 10/4 43. सागारधर्मामृत 5/45 44. धर्मसंग्रहश्रावकाचार 6/204 45. श्रावकाचारसरोद्धार 326-327 - शंकरनगर, दिल्ली रोड, सहारनपुर (उ. प्र.) एकांगी चिन्तन का दुष्परिणाम समग्र चिन्तन के बिना सम्यक् परिणाम प्राप्त नहीं होता। बौद्धिक चिन्तन के परिणाम पर भी नजर डाल लेना चाहिए। एकांगी विचार कभी कभी खतरनाक साबित हो सकते हैं। अतः एकांगी दृष्टिकोण सही नहीं होता। चार मित्र जंगल में से होकर जा रहे थे। उनमें तीन वैज्ञानिक और एक अवैज्ञानिक था। वे वैज्ञानिक थे, किन्तु बुद्धिमान नहीं थे। चौथा अवैज्ञानिक होकर भी बहुत बुद्धिमान था। उन्हें जंगल में एक जगह शेर का अस्थि कंकाल दिखाई दिया। वे परस्पर बात करने लगे। जो पढ़ा है, उसके प्रयोग करने का अच्छा मौका है। प्रयोग द्वारा अस्थि पंजर में प्राण डाल देना चाहिए। चौथा बोला- परिणाम क्या होगा, क्या इस पर विचार किया? यदि प्रयोग करने का मन ही बना लिया है तो ठहरो मुझे पेड़ पर चढ़ जाने दो। तीनों ने अपने अपने प्रयोग किये। पहले ने मांस चमड़ी, उत्पन्न की, दूसरे ने उसमें रक्त का संचार किया और तीसरे ने जैसे ही उसमें प्राण डाले, शेर खड़ा हो गया। वह भूखा था। उसने सामने खड़े तीनों वैज्ञानिकों को खाने के लिए आक्रमण कर दिया। चौथा व्यक्ति पेड़ पर बैठा हुआ यह सब देख रहा था। वह भावी परिणाम जानता था, सो बच गया। ___ अस्तु हमारा चिन्तन सभी आयामों और दृष्टिकोणों को देखकर सर्वांगीण होना चाहिए। एकांगी चिन्तन सदैव खतरनाक व दुष्परिणामदायी होता है। -साभार, अप्रकाशित कृति 'आस्था के आयाम' से

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