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श्रावक और उनके षड् आवश्यक कर्त्तव्य
-डॉ. सारिका त्यागी
श्रावक शब्द का अर्थ
श्रावक शब्द का सामान्य अर्थ श्रोता या सुनने वाला है। जो जिनेन्द्र भगवान के वचनों को एवं उनके अनुयायी गुरुओं के उपदेश को श्रद्धापूर्वक सावधानी से सुनता है, वह श्रावक है कहा भी गया है
"अवाप्तदृष्टयादि विशुद्धसम्पत् परं समाचारमनुप्रभातम्।
श्रृणोति यः साधुजनादतन्द्रस्तं श्रावकं प्राहुरमीर जिनेन्द्राः॥''९९ अर्थात् सम्यग्दर्शन आदि विशुद्ध सम्पत्ति को प्राप्त जो व्यक्ति प्रात:काल से ही साधुजन से उनकी समाचार विधि को आलस्य रहित होकर सुनता है, जिनेन्द्र भगवानों ने उसे श्रावक कहा है। श्रावक शब्द की एक निरूक्ति भी प्राप्त होती है, जिसमें श्र, व और क वर्णों को क्रमशः श्रद्धा, विवेक और क्रिया का प्रतीक मानकर श्रद्धावान् विवेकशील एवं अणुव्रती गृहस्थ को श्रावक कहा गया है। यथा
"श्रन्ति पचन्ति तत्त्वार्थश्रद्धानं निष्ठां नयन्तीति श्राः तथा वपन्ति गुणवत्सप्तक्षेत्रेषु धनबीजानि निक्षिपन्तीति वाः तथा किरन्ति क्लिष्टकर्मरजो विक्षिपन्तीति काः, ततः कर्मधारये श्रावका इति भवितः।"२
अर्थात् श्रावक शब्द में प्रयुक्त 'श्रा' शब्द तत्त्वार्थश्रद्धान की सूचना देता है, 'व' शब्द सप्त धर्म क्षेत्रों में धन रूपी बीजों को बोने की प्रेरणा करता है और 'क' शब्द क्लिष्ट कर्म या महान् पापों को दूर करने की सूचना देता है इस प्रकार से कर्मधारय समास करने पर निरुक्ति के रूप में श्रावक शब्द निष्पन्न हो जाता है। श्रावक की अन्य संज्ञायें
श्रद्धावान् गृहस्थ को भिन्न-भिन्न स्थानों पर श्रावक, उपासक, आगारी, देशव्रती, देशसंयमी आदि नामों से उल्लिखित किया गया है। यद्यपि यौगिक दृष्टि से इन नामों के अर्थों में अन्तर है, तथापि सामान्यतः ये एकार्थक या पर्यायवाची माने जाते हैं। देशव्रती या देशसंयमी पञ्चम गुणस्थानवर्ती श्रावक की ही संज्ञा हो सकती है, चतुर्थ गुणस्थानवर्ती की नहीं।
आगम और श्रावकाचारों में श्रावक शब्द को अनेक नामों से अभिहित किया गया है- उपासक, श्रावक, देशसंयमी, आगारी, श्रममोपासक, सद्गृहस्थ, सागार आदि। आचार्य जिनसेन कृत आदिपुराण में भी 'श्रावक' के लिये उपासक, गृहस्थ आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है।'
उपासक का अर्थ उपासना करने वाला होता है जो मनुष्य वीतराग देव की नित्य