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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
पॉइजनिंग में अपामार्ग की पत्तियों का रस पिलाने से तुरन्त आराम मिलता है।
अथर्ववेद में लगभग 76 औषधियों का नाम आया है। इसी वेद में अपामार्ग नामक दो सूक्त हैं। इसमें अपामार्ग के गुण, बल और रोगानुसार सेवन के विषय में वर्णन प्राप्त होता
अपामार्ग भेषजों की ईशानः- यह अपामार्ग औषधियों का ईशान ईश्वर है। यह रोगों को दग्ध करने वाली तथा सब पापों को दूर करने वाली है। प्रभु ने इस औषधि को अपरिचित सामर्थ्ययुक्त बनाया है।'
अथर्ववेद के दूसरे मंत्र में अपामार्ग के विषय में लिखा ही है कि यह औषधि सचमुच रोगों को जीतने वाली, पीड़ाजनित आक्रोशों को दूर करने वाली, रोगों को अभिभूत करने वाली, अनेक व्याधियों को निवृत्ति के लिए फिर-फिर मलों का नि:सारण करने वाली इस अपामार्ग औषधि को मैं पुकारता हूँ।
आयुर्वेद में औषधियों का प्रयोग करने से पूर्व आह्वान करना आवश्यक है बिना निमंत्रण के औषधियाँ अपना प्रभाव पूर्णरूप से नहीं दिखाती हैं।
रोग वृद्धि की समाप्तिः - कई रोगों में रोगी ऊटपटांग बोलने लगता है, उसे चित्तभ्रम सा हो जाता है। कईयों में मूर्छा की स्थिति हो जाती है। कई रोगों में खून सूखने लगता है। अपामार्ग इन सब रोगों को रोकती है। बच्चों को सूखा रोग हो जाता है रोग कृमि बालक के अपरिपक्व शरीर में रोगों को उत्पन्न कर देते हैं। ये कृमि रुधिर या मांस में प्रविष्ट होकर विकार का कारण बनते हैं। महौषधि अपामार्ग इन रोग कृमियों को समूल नष्ट करता है।' अपामार्ग के प्रयोग से हम पूर्ण स्वस्थ बनते हैं। बुरे स्वप्न नहीं आते हैं। जीवन रोग शून्य होकर कष्टमय नहीं रहता, भयजनक रोगकृमियों का विनाश होता है, शरीर अलक्ष्मीक (अशोभित) नहीं रहता, बवासीर आदि अशुभ रोग दूर हो जाते हैं। रोग से आक्रान्त होकर हम अशुभ वाणियाँ नहीं बोलते।'
अपामार्ग औषधि के सेवन से भूख-प्यास के अभावजनक रोग को, इन्द्रिय शैथिल्य और नपुंसकता को अपामार्ग के प्रयोग से विनष्ट करते हैं।"
यह अपामार्ग औषधि सब औषधियों के गुणों से संपन्न है। इसके प्रयोग से शरीर में कहीं भी स्थित रोग को हम दूर करते हैं। यह रुग्ण पुरुष नीरोग होकर विचरण करें।
क्षेत्रिय रोग निराकरण:- अपामार्ग औषधि जन्मजात रोगों के नष्ट करने की शक्ति वाली है। यह औषधि माता-पिता के शरीर से आगत संक्रामक क्षय, कुष्ठ, अपस्मार आदि रोगों को दूर करती है। जो रोग पीड़ा को उत्पन्न करने वाले हैं उन्हें भी निश्चय से दूर करने की सामर्थ्य वाली है तथा ये औषधि कान्तिहीन शरीर को कान्तिवाली बनाने की सामर्थ्य रखती है।
अपामार्ग औषधि रक्तशोधक और रक्तवर्धक होने से कान्तिहीन को कान्तिवान बनाने में समर्थ है।
अथर्ववेद का अगला मंत्र पुनः शरीर को रोग रहित व तेजस्वी बनाने की विधि में अपामार्ग औषधि का प्रयोग करने का आशीर्वाद देता है। मंत्र में कहा गया है कि हे