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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
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गाती थीं एवं मनोहर नृत्य भी करती थीं।
राजा द्रुपद ने यह घोषणा की थी कि जो गाण्डीव धनुष को गोल करने और बेधने में समर्थ होगा, वही द्रोपदी का पति होगा। जब वह किसी से भी नहीं टूट सका तो अन्त में अर्जुन ने उसका सन्धान कर द्रोपदी का वरण किया।
राजकीय परिवारों में जिस प्रकार बालक के पालन के लिए धाय नियुक्त की जाती थी, उसी प्रकार बालिकाओं के लिए भी नियुक्त की जाती थी। विद्याधर की पुत्री श्रीमाला का उल्लेख पउमचरिय में हुआ है, जिसके लिए धाय नियुक्त की गई थी। यह धाय सर्वार्थशास्त्र कुशल थी, जिससे कि वह बालिका के शारीरिक और मानसिक विकास की अच्छी तरह देखभाल कर सके। पुत्र के अभाव में माता-पिता का प्रेम पुत्री के प्रति बढ़ जाता था। जब भामण्डल का अपहरण कर लिया गया तो माता-पिता को सांत्वना उसकी बहिन सीता से प्राप्त हुई। सीता के कारण माता-पिता ने अपने पुत्र के खोने के दु:ख को भुला दिया। बढ़ती उम्र में लड़की को खुली हवा, उचित साथ तथा सही स्वतंत्रता आवश्यक थी, जो कि पुत्रियाँ प्राप्त करती थीं। अञ्जना इस अवस्था में गेंद खेलती थी। सीता अपनी विद्याधर सहेलियों के साथ खेलती थी। वे उद्यान में जलक्रीड़ा करती थीं। राजकुमारी अतिसुन्दरा एक गुरु के यहाँ शिक्षा प्राप्त करती थी। कन्याओं की शिक्षा बहुमुखी थी। कैकेयी ने कला और विज्ञान के अनेक विषयों का अध्ययन किया था। जैसे अक्षर विद्या, व्याकरण, छन्दशास्त्र, ललित कलायें- संगीत, नृत्य-चित्रकला, वेश कौशल, गंध विद्या, पत्तियाँ काढ़ना, विज्ञान-अंकगणित, रत्नपरीक्षा, पुष्पविद्या, गजविद्या तथा अश्वविद्या। क्षत्रिय कन्या होने के कारण उसने सैन्यविज्ञान का निश्चित रूप से अध्ययन किया होगा, नहीं तो युद्ध में दशरथ के रथ की वह सारथी कैसे बनती? रानी सिंहिका ने उत्साहपूर्वक युद्ध कर आक्रमणकारियों को परास्त किया। सीता ने कुछ मुनियों के सामने नृत्य करते हुए गायन किया। गन्धर्वी चित्रमाला ने वन में अञ्जना को सांत्वना देने के लिए संगीत की ध्वनि की। सुग्रीव की पुत्रियों ने राम को दु:ख के समय मन बहलाने के लिए संगीत की ध्वनि के साथ नृत्य किया। लक्ष्मण की पत्नियों द्वारा संगीत तथा नृत्य किया जाना इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि कन्याओं को संगीत तथा नृत्यकला का प्रशिक्षण देने का रिवाज था। कैकेयी की शैक्षणिक योग्यताएं यह निर्देश करती हैं कि कन्याओं को विभिन्न विषयों का शिक्षण- प्रशिक्षण दिया जाता था। यह माँ बाप पर निर्भर था कि वे अपनी पुत्रियों को किस प्रकार का शिक्षण प्रशिक्षण दें। इसके लिए यह आवश्यक था कि शिक्षा प्राप्ति के अंतिम समय तक उन्हें स्वतंत्रता दी जाय। अतिसुन्दरा का अपने गुरु के घर जाना, वहां पुरोहित पुत्र के साथ पढ़ना, उनमें आपस में प्रेम का विकसित होना और अंत में दोनों का भाग जाना- ये सब चीजें इस बात को कहती हैं कि कन्यायें घर में बन्द नहीं रहती थीं तथा वे एक निश्चित अवस्था- विवाह की अवस्था तक शिक्षा प्राप्त करती थीं। कल्पसूत्र में स्त्रियों की चौंसठ कलाओं का उल्लेख है। इससे यह निर्देश प्राप्त होता है कि स्त्रियाँ अध्ययन की सभी शाखाओं में शिक्षित होती थीं। कौशल्या तथा तारा मंत्रीवत् थीं। पण्डिता के रूप में द्रोपदी यह प्रदर्शित करती है कि स्त्रियाँ वेद तथा ज्ञान की दूसरी शाखाओं में