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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
81 काल में भी अपने आहार-विहार के लिए दूसरे व्यक्ति के द्वारा बाधा नहीं पहुँचती थी। नागकुमार चरित्र में नागकुमार को अन्य देशों में परिभ्रमण करते हुए वर्णन किया है। जिसमें उसके आहार-विाहर की स्वतंत्रता का वर्णन प्राप्त होता है। राजा की राज्यसभा में विभिन्न धर्म के अनुयायी पदों पर पदस्थ थे। राजा इन पदस्थ कर्मचारियों को राज्य का काम देता था राजा को उनके धर्म तथा संस्कृति से किसी प्रकार का मतलब नहीं होता था। इन पदों में मंत्री, सेनापति, राजपुरोहित, सभासद, विद्वत्वर्ग आदि महत्त्वपूर्ण पद थे राजा इनकी ईमानदारी तथा कार्य करने की कुशलता से प्रसन्न होकर इनको पदों पर स्थापित करता था। इस प्रकार की व्यवस्था से सामाजिक व्यवस्था तथा सांस्कृतिक व्यवस्था अबाधित रूप से चलती थी। यह धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना का सूचक है।
मुगल काल के बाद भारत में धर्म निरपेक्षता में हानि होने लगी। मुगल शासक अपने धर्म की स्थापना के लिए दूसरे के धर्म का नाश करने लगे तथा दूसरे धर्म की संस्कृति का नाश के अपनी संस्कृति का बल पूर्वक स्वीकार करने को बाधित करने लगे। परिणाम स्वरूप समाज में अराजकता, भय, अविश्वास की वृद्धि एवं संस्कृति का हास होने लगा। न्यायिक धर्म निरपेक्षता :
धर्म निरपेक्षता के लिए न्याय का बहुत ही महत्त्व है यदि प्रजा को राजा न्याय नहीं देता तो प्रजा स्वयं ही निर्णय करने लगेगी। राजा को प्रजा तथा धर्म के अनुरूप न्याय करने की क्षमता होनी चाहिए। यदि राजा पक्षपातपूर्ण न्याय-अन्याय का निर्णय करेगा तो प्रजा का राजा के ऊपर से विश्वास हट जाएगा और जिस प्रजा का राजा के ऊपर से विश्वास हट जाता है वह राजा राज्य करते हुए भी राजा नहीं है। या तो वह प्रजा पर बल पूर्वक राज्य करता है या राज्य से च्युत कर दिया जाता है। इसलिए राजा को न्याय पूर्वक राज्य करना चाहिए। पुरा काल में रामराज्य को अच्छा माना जाता था क्योंकि राम ने न्याय के लिए अपनी प्रिय पत्नि का भी त्याग कर दिया था। राजा विक्रमादित्य का शासन काल भी कुछ ऐसे ही न्याय परायण राजा का स्मरण कराता है। न्याय पूर्ण राज्य करने वाला राजा युगों-युगों तक इतिहास में प्रसिद्ध होता है। धर्म निरपेक्षता से लाभ : एकता में वृद्धि
यदि जाति वर्ग आदि असमान हो परन्तु मन समान हो तो मित्रता में वृद्धि होती है। मन के समान होने के कारण धर्म निरपेक्षता है इसी धर्म निरपेक्षता के कारण विभिन्न वर्गो के लोगों में संगठन दिखाई देता है। सुख, शांति, निर्भयता में वृद्धि
वर्तमान समय में समाज में प्रत्येक व्यक्ति दु:खी है क्योंकि उसका मन दु:खी है वह अशान्त है इस कारण उसे भय है। अपनी एकांत धारणा के कारण दूसरों का अप्रिय बन चुका है। इससे वह भय से जीवन व्यतीत करता है। दूसरी ओर साधु दोनों पक्षों को जानकर मन को एकाग्र कर सुख शांति तथा निर्भयता का जीवन व्यतीत करते हैं।