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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 है वह उसी में अपना विचार बना लेता है चाहे वह सही हो या गलत हो इस स्वार्थी जीवन के कारण धार्मिक स्थलों में भी अपना लाभ देखने लगे हैं। अतः धर्म को निष्पक्ष भाव से देखकर ही ग्रहण करना चाहिए। निष्कर्ष
पुराकाल में और वर्तमान काल में धर्म निरपेक्षता का अतिमहत्त्व है। अराजकता, अन्याय, पक्षपात, दूसरे के धर्म में हस्तक्षेप न करे इसलिए आवश्यक है एक धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना होनी चाहिए। सांप्रदायिकता में भेदभाव हो गया है प्रत्येक धर्म में मतभेद के कारण नये सांप्रदायिकों का जन्म हो रहा है। जिससे समाज के कई विभाग हो रहे हैं
और विदेशी संस्कृति भारत की संस्कृति पर अपना कुप्रभाव दिखा रही है। बुड़े बुजुर्गों की बात कोई भी सुनता नहीं जब तक पूर्ण रूप से धर्म निरपेक्षता नहीं होगी तब तक मतभेद होता रहेगा और समाज के टुकड़े होते रहेंगे। अतः समाज की अखण्डता के लिए एवं परिवार में सुख शांति के लिए धर्म निरपेक्षता की नितांत आवश्यकता है।
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