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अनेकान्त 64/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2011
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समझाते हैं- हे मनीषी ! लगता ऐसा है कि मैंने दूसरे का घात किया, परन्तु दूसरे की तो पर्याय का घात होता है लेकिन परिणामों का घात तेरा ही होता है' पर्याय जितनी महत्त्वशाली है, परिणति उससे कई गुनी महत्त्वशाली है। पर्याय पुनः मिल जाती है, परन्तु वैसी परिणति पूरी पर्याय में नहीं मिल पाती है।"
९. आचार्य सोमदेव सूरि ने यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन में कहा कि प्रमाद के योग से प्राणियों के प्राणों का घात करना हिंसा है और उनकी रक्षा करना अहिंसा है। आचार्य सोमदेव सूरि प्रमादी का विषय विस्तार से बताते हैं कि जो जीव चार विकथा, चार कषाय, पाँच इन्द्रियाँ, निद्रा और मोह के वशीभूत हैं, वह प्रमादी है। देवता के लिए, अतिथि व पितरों के लिए मंत्र सिद्धि व औषधि के लिए प्राणियों की हिंसा नहीं करनी चाहिए।
१०. आचार्य अमितगति, अमितगति श्रावकाचार" में लिखते हुए श्रावकों को प्रबोधन देते हैं कि अहिंसा के बिना वक के लिए व्रत नियमादिक सुख के उत्पादक नहीं होते। जैसे पृथ्वी के बिना पर्वत नहीं ठहर सकते हैं, उसी प्रकार आत्मगुणों की आध रभूत अहिंसा को विनाश करने वाला पुरुष, अपनी आत्मा को नरक में गिराता है। आचार्य अमितगति हिंसा के 108 भेद कहते हैं- समरम्भ, समारम्भ और आरम्भ रूप तीन प्रकार की हिंसा मन-वचन-काय तीन योगों से कृत, कारित और अनुमोदना पूर्वक क्रोध, मान, माया व लोभ रूप कषाय भावों से निरन्तर करता रहता है। इसका परस्पर गुणा करने पर हिंसा के एक सौ आठ (3x3x3x4-108) भेद हो जाते हैं। समरम्भ से तात्पर्य है- हिंसा करने का विचार करना (वैचारिक हिंसा) समरम्भ है- हिंसा की क्रियान्वित के प्रयोजन से हिंसा के उपकरण, साधन आदि जुटाना समारम्भ और हिंसा को प्रयोगात्मक कृत्य बदलना आरम्भ है। 15
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जैन गृहस्थ (श्रावक) एवं साधु क्रमशः अणुव्रत और महाव्रत के रूप में उक्त 108 प्रकार से होने वाली हिंसा की सम्भावनाओं से बचता है। जब आचारगत अहिंसा जाति, देश, काल एवं समय के द्वारा अविच्छिन्न होता है तो अणुव्रत रूप से होती है, परन्तु जब अहिंसा जाति, देश, कालादि द्वारा अविच्छिन्न न होकर सदा सर्वदा, सर्वावस्था में पालन की जाती है तो वही श्रेष्ठ व महाव्रत संज्ञा को प्राप्त होती है, जिसका पालन योगीजन करते हैं। गृहस्थों को महाव्रत सम्भव नहीं, परन्तु वे जानबूझकर किसी भी प्राणी की शरीर से हिंसा नहीं करते। भले ही परिस्थितिजन्य हिंसा करवानी या अनुमोदना करना पड़े अस्तु वह अणुव्रत रूप होती है। "
उक्त प्रमुख आचार्यों के अनुभव व आगम कथनों से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि हिंसा को द्रव्य हिंसा व भाव हिंसा के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भौतिक रूप से द्रव्य हिंसा भले ही घटित न हो पर यदि मन में, विचारों में हिसां की चिनगारियाँ उठ रही हों तो वह भाव हिंसा का कर्ता है। वैचारिक हिंसा से आतंकवादी हाथों में शस्त्र उठाता है और फिर उसे कृत्य में बदलने के लिए द्रव्य हिंसा करता है। 26 नवम्बर 2008 को आतंकवादियों द्वारा मुम्बई में जो क्रूर हिंसा को अंजाम दिया गया था। लगातार 90 घण्टे