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________________ 84 अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 है वह उसी में अपना विचार बना लेता है चाहे वह सही हो या गलत हो इस स्वार्थी जीवन के कारण धार्मिक स्थलों में भी अपना लाभ देखने लगे हैं। अतः धर्म को निष्पक्ष भाव से देखकर ही ग्रहण करना चाहिए। निष्कर्ष पुराकाल में और वर्तमान काल में धर्म निरपेक्षता का अतिमहत्त्व है। अराजकता, अन्याय, पक्षपात, दूसरे के धर्म में हस्तक्षेप न करे इसलिए आवश्यक है एक धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना होनी चाहिए। सांप्रदायिकता में भेदभाव हो गया है प्रत्येक धर्म में मतभेद के कारण नये सांप्रदायिकों का जन्म हो रहा है। जिससे समाज के कई विभाग हो रहे हैं और विदेशी संस्कृति भारत की संस्कृति पर अपना कुप्रभाव दिखा रही है। बुड़े बुजुर्गों की बात कोई भी सुनता नहीं जब तक पूर्ण रूप से धर्म निरपेक्षता नहीं होगी तब तक मतभेद होता रहेगा और समाज के टुकड़े होते रहेंगे। अतः समाज की अखण्डता के लिए एवं परिवार में सुख शांति के लिए धर्म निरपेक्षता की नितांत आवश्यकता है। संदर्भ सूची: 1. भावना द्वात्रिंशतिका- आचार्य अमितगति पद्य-1, जैन पूजापाठ संग्रह, पृ. 324, सं. कस्तूरचंद छावड़ा, जवाहर प्रेस कलकत्ता। 2. रत्नकरण्डक श्रावकाचार-आचार्य समन्तभद्र स्वामी, टीकाकार- पं. सदासुखदास जी, अधिकार-1, श्लोक-2 पृष्ठ-1, प्रकाशक- पं. सदासुख ग्रंथमाला- अजमेर, संस्करण-प्रथम 3. श्रावकाचार संग्रह- यशस्तिलक चम्मू, श्री सोमदेव सूरि, संपादक- पं. हीरालाल शास्त्री, भाग-2, श्लोक-2, पृष्ठ-123 4. सर्वार्थसिद्धि, आचार्य पूज्यपाद स्वामी, संपादक-पं. फूलचंद शास्त्री, अध्याय-9 पृ.-321 प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, संस्करण-चतुर्थ। तत्त्वार्थसूत्र, आचार्य उमास्वामी, संयोजक-प्रदीप शास्त्री, अध्याय-7, सूत्र-13, पृ.-120, प्रकाशक- श्री दि. जैन साहित्य प्रकाशन समिति बरेला, जबलपुर (म.प्र.) संस्करण-2000 प्रवचनसार, आ. कुन्दकुन्द स्वामी, तात्पर्यटीका- आ. जयसेन, चारित्राधिकार, गाथा-232, 233, पृष्ठ-323, 324 7. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-7, सूत्र-4, पृष्ठ-117 8. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-7, सूत्र-14, पृष्ठ-121 9. जैन आचार मीमांसा, आ. देवेन्द्र मुनि, पृ.74, प्रकाशक-श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय गुरु पुष्कर मार्ग, उदयपुर (राज.) 1995 10. सिंगालोवाद सुत्त-दीर्घनिकाय, अध्याय-8, सूत्र-1, पृ.-4, अनुवादक- राहुल सांकृत्यायन महाबोधि सभा सारनाथ, वाराणसी 1936 11. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-7, सूत्र-15, पृष्ठ-121 12. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-7, सूत्र-17, पृष्ठ-121 13. जैनेन्द्रसिद्धांत कोश भाग-2, प्रकरण-जलगालन निर्देश, पृ. 325 14. जैनेन्द्रसिद्धांत कोश, भाग-2, प्रकरण जलगालन निर्देश, पृष्ठ-325 15. मनुस्मृति, रणधीर बुक सेल, हरिद्वार-6/46 16. सागार धर्मामृत, पं. आशाधर जी, संपादक-कैलाशचंद सिद्धांत शास्त्री, अध्याय-3, श्लोक-16, पृष्ठ-131, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, 2005
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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