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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
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की प्रतिष्ठा के पश्चात् यहाँ स्थापित की गई होंगी। यहाँ यह भी उल्लेख आवश्यक होगा कि तीर्थंकर पार्श्वनाथ की सेण्डस्टोन पाषाण से निर्मित इस प्रकार की मूर्ति आस-पास के क्षेत्र से अब तक प्राप्त अन्य पाषाण मूर्तियों से सर्वथा भिन्न है जो मूर्ति विशेषज्ञों के लिए गवेष्य का विषय हो सकता है।
जिले के खानपुर कस्बे के चाँदखेड़ी नामक ग्रामान्तर्गत आदिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर
भूगर्भ में प्रतिष्ठित तीर्थंकर स्वामी आदिनाथ (ऋषभदेव ) की एक विशाल, अति भव्य और कलात्मक मूर्ति प्रतिष्ठित है जो सुपूज्य है यह मूर्ति निकट की एक पर्वतमाला से निकली थी। मूर्ति की भुजा पर यद्यपि संवत् 512 का अंकन है परन्तु इसका ऐतिहासिक आधार अभी स्पष्ट नहीं हो पाया कि क्या यह उक्त संवत् में निर्मित हुई थी ? पुराकला की दृष्टि से यह मूर्ति इतनी मनोज्ञ है कि इसे बाहुबली की मूर्ति के उपरान्त जैनमतीय मूर्तिकला में भारत की दूसरी मनोज्ञ मूर्ति माना जाता है। यह 6.25 फीट ऊँची और 5 फीट 5 इंच चौड़े रक्त पाषाण पर उकेरी गई है। अज्ञात शिल्पी ने इसे जैन शास्त्रीय कला परम्परानुसार पद्मासनावस्था तथा बद्धपद्मांजलि मुद्रा में निर्मित किया है। मूर्ति के वक्ष पर श्रीवत्स तथा हाथ पैरों में पद्म बने हुए हैं जो अपूर्व वीतरागता को दर्शाते हैं। मूलनायक के अधखुले नेत्रों और उसकी धनुषाकार भौहों के अंकन अत्यन्त प्राणवान हैं।
जिले की झालरापाटन नगरी के शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में मूलनायक तीर्थंकर शांतिनाथ की 12 फुट ऊँची सुन्दर मूर्ति खड्गासन मुद्रा में प्रतिष्ठित है मूर्ति में तप भावों सहित सौम्यता के स्वरूप अपूर्व वीतरागता को प्रदर्शित करते हैं। झालावाड़ राज्य के पुरातत्त्ववेत्ता पं. गोपाल लाल व्यास ने इस मूर्ति पर अंकित एक लेख में संवत् 1145 (सन् 1088 ई०) पढ़ा था। चूंकि इस मन्दिर का निर्माण 1046 ई० में हुआ जो पूर्व का समय है। अत: यह माना जाना चाहिए कि इस मूर्ति पर अंकित अभिलेख का वर्ष संवत् 1145 इस मूर्ति का इस मन्दिर में प्रतिष्ठा काल का होगा, क्योंकि मन्दिर निर्माण के पश्चात् ही मूर्ति की प्रतिष्ठा होती है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि मन्दिर निर्माण तथा मूर्ति की प्रतिष्ठा में 42 वर्ष का अंतर रहा है।
इस मन्दिर के गर्भगृह के बाह्य भाग में अम्बिका देवी और चक्रेश्वरी देवी की बड़ी सुन्दर मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं जो भारतीय जैन मूर्तिकला में कलात्मक दृष्टि से आधार बनाने योग्य हैं। इनमें से एक कलात्मक मूर्ति चक्रेश्वरी की है जो अष्टभुजा युक्त है। इसके मुख्य करों में क्रमशः जपमाला और एक हाथ जंघा पर समर्पित मुद्रा में है जबकि शेष करों में से दो में चक्र, बिजोरा फल, शूल, मुगदर आदि धारित है। देवी के शीश पर सुन्दर मुकुट एवं ग्रीवा से अनेक लड़ियों का हार और एक लम्बी मणिमाला है जो वक्ष के मध्य से होकर नाभि तक है। मूर्ति में देवी को पुरुष पीठ पर आसीन बताया गया है। इसी के निकट दक्षिण भाग में षष्ठभुजाधारी अम्बिका की मूर्ति है जो सिंह पीठ पर बने एक पादपीठ पर आसनस्थ है। देवी का बायां जनु सिंह की पीठ पर है। इसमें देवी के करों में कटार, वज्र, कमल, घण्टा, ढाल एवं पुष्प हैं। इसी प्रकार एक अन्य आसनस्थ देवी की मूर्ति है जिसके करों में भी उक्त प्रकार के आयुध हैं। दोनों देवी मूर्तियों को परम्परागत आभूषणों से