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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 पद्मासन जैन मूर्तियाँ है जबकि छत्रावली के ऊपर 8 खड़गासन जैन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। प्रहलासन मूर्ति के ठीक नीचे धरणेन्द्र और पद्मावती की मूर्तियाँ हैं। एक ही शिलाफलक पर उत्कीर्ण इस मूर्ति का काल संवत् 1226 ज्येष्ठ वदी, 16 बुधवार माना जाता है जो इसकी पीठिका पर अंकित है।
झालावाड़ के राजकीय पुरातत्त्व संग्रहालय में जैन तीर्थकरों की अनेक ऐसी मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं जिन पर आज तक प्रकाश ही नहीं डाला गया। इस क्षेत्र में जैन पुराकला का अध्ययन करने की दृष्टि से इन मूर्तियों का विवरण आवश्यक माना जा सकता है। यहाँ प्रदर्शित ईसा की 9वीं से 16वीं सदी अवधि की जैन मूर्तियाँ इस जिले के विभिन्न स्थलों से अवाप्त की गई थीं। इनमें तहसील पंचपहाड़ के रतनपुरा से प्राप्त एवं संग्रहालय के संख्यांक 37 पर प्रदर्शित मूर्ति तीर्थकर अजितनाथ की है जो 9वीं सदी की रेखांकित की गई है। 40x22 इंच माप की सिलेटिया पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण यह मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा की है। इसमें पैरों के नीचे अग्रभाग में गज का लांछन है। मूर्ति के कन्धों पर दोनों ओर गजों की मूर्तियों के दायीं-बायीं ओर पुरुषों की चंवर लिए लघु मूर्तियाँ हैं। इनके नीचे पद्मासन मुद्रा में तीर्थकरों की मूर्तियाँ हैं। इसी के निकट 16वीं सदी की प्रदर्शित मूर्ति तीर्थकर सम्भवनाथ की है, जो श्वेत पाषाण पर उत्कीर्ण है। पद्मासन मुद्रा की इस मूर्ति के नीचे पीठिका के समक्षघोड़े का चिन्ह है। मूलनायक के वक्ष के मध्य श्रीवत्स का अंकन है जबकि जंघाओं के पृष्ठ में एक लेख में संवत् 1544 पठन में आता है। मूर्ति 20x16 इंच माप की है, जिसमें वीतरागता के भाव को मुखरित किया गया है। ___ संग्रहालय के संख्यांक 449 पर प्रदर्शित 11वीं सदी की एक मूर्ति तीर्थकर ऋषभदेव की है जो सन् 2003 में अकलेरा उपखण्ड के देवली गाँव से मिली थी। 75x69 इंच माप की यह मूर्ति हल्के सिलेटिया पाषाण फलक पर उत्कीर्ण है, जिसमें शीश के पृष्ठ में सुन्दर प्रभामण्डल का कलात्मक अंकन है। मूर्ति के पादपीठ के नीचे और हाथों में कमल पुष्पों का अंकन दृष्टव्य है, जबकि शीश के दोनों कानों के नीचे तक धुंघराले केशों का अंकन है। इसी के निकट एक अन्य प्रदर्शित मूर्ति तीर्थकर वासुपूज्य की है। श्वेत पाषाण पर उत्कीर्ण तथा 16x12 इंच माप की इस मूर्ति के वक्ष के मध्य में श्रीवत्स का चिह्न और पीठिका पर एक अस्पष्ट लेख है, जो पठन में नहीं आता, परन्तु उसमें संवत् 1544 पढ़ने में आया है। इसी के निकट एक और मूर्ति तीर्थकर पार्श्वनाथ की है, जो श्यामवर्णीय पाषाण पर 22x17 इंच माप की है। यह भी पद्मासन मुद्रा में है। इसकी पाद पीठिका पर संवत् 1544 अंकित है। मूर्ति के शीश पर यहाँ पंचमुखी सर्प का वितान है तथा वक्ष के मध्य में श्रीवत्स का अंकन है। मूर्ति के एक चौखट में नाग की आकृति का अंकन तथा एक अस्पष्ट सा लेख है। अत्यधिक घिसाई से उभरी चमक के कारण यह धातु मूर्ति होने का आभास देती है।
संग्रहालय में प्रदर्शित एक अन्य जैन मूर्ति तीर्थकर ऋषभदेव की है। मटमैले पाषाण फलक पर पद्मासन मुद्रा में 25x22 सेमी. माप की इस मूर्ति की पीठिका पर वृषभ की आकृति का अंकन है। ऊपर की ओर तीर्थकर के जन्म के भावों का अंकन इस मूर्ति के