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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
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देना चाहती थी। नारी के कामुक चरित्र के भी अनेक दोष पउमचरिउ में प्रकट किए गए
संपूर्ण रूप में देखा जाय तो नारी के अन्दर आत्मसम्मान की भावना रही है। यह परिस्थिति तथा सामाजिक स्थिति भी रही कि विवाहित स्त्रियाँ भी अपहृत हुई और उन्हें अपहरणकर्ता की पत्नी बनना पड़ा। चन्द्राभा को मधु ने उसके पति से छलपूर्वक अलग कर दिया और बलात् उसे अपनी पत्नी बना लिया। किन्तु ऐसा ही एक अन्य मामला आने पर उसने मधु को फटकारा। सीता ने राम के अपकृत्य की भर्त्सना की और राम द्वारा क्षमायाचना करने पर भी उसने पुनः गृहस्थावस्था स्वीकार नहीं की और संन्यस्त जीवन को स्वीकार किया। धार्मिक मामलों में गृहस्थ नारी और पुरुष को समान अधिकार और समान नियम थे। संदर्भ:
1. वैरिस्टर चम्पतराय जैनः जैन लॉ, प्रस्तावना पृ. 13-14 2. वही पृष्ठ 17 3. वही पृष्ठ 18 4. इन्द्रनन्दि संहिता पृ. 49-50 5. वही पृष्ठ-51 6. अर्हन्नीति-दायभाग 25 7. वही 26 8. वही 27 9. वही 32 10. पद्मचरित 3/152 11. वही 101/37 12. वही 73/51-52 13. वही 64/61 14. वही 15/24 15. वही 15/20, 24/5 16. वही 71/6,3/102 17. वही 3/118-120 18. वादिराजसूरि : पार्श्वनाथचरित, षष्ठसर्ग 19. वही 4/126-139 20. महाकवि अर्हद्दास, पुरुदेवचम्पू 2/65 21. वही 6/45 22. आचार्य जिनसेन : आदिपुराण 38/60 23. वही 6/83 24. समराइच्चकहा 8 पृ. 744 25. वही 8 पृष्ठ 735-739 26. वही 2 पृ. 87-88, 8 पृ. 759 27. वही 8 पृ. 759