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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 उन्होंने मन में नहीं रखा। राम की कहानी एक पति की पत्नी के प्रति विश्वासपूर्ण कर्तव्यपरायणता की कहानी है। सुग्रीव की पत्नी को जब कृत्रिम सुग्रीव ने छल से ग्रहण करना चाहा तो उसने राम की शरण ली और सीता की खोज में अनेक कठिनाईयों का सामना किया; क्योंकि वह तारा को प्रसन्न रखना चाहते थे। सुग्रीव ने रावण से टक्कर लेने का कठिन निर्णय लिया। पवनञ्जय को जब अपनी निष्कासित पत्नी का पता नहीं चला तो उसने आत्मघात का निश्चय किया। पुरोहित मधुपिंगल तथा वीरक जुलाहे को बहुत कष्ट हुआ, जबकि उनकी पत्नियों का अपहरण हुआ। उन्हें पुनः प्राप्त करने का उन्होंने उत्तम प्रयास किया।
पत्नी को प्रणयिनी कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि पत्नी का यह कर्त्तव्य है कि वह पति से प्रेम करे और उसे प्रसन्न रखे। पति-पत्नी की प्रेम क्रीड़ा के अनेक संदर्भ प्राप्त होते हैं। जब पति बाहर होता था तो पत्नी उसकी प्रतीक्षा करती थी और वापिस आने पर उत्साह से हर्ष के क्षणों में उत्सव मनाती थी। पत्नी की जिज्ञासा तब और बढ़ जाती थी, जब उसका पति युद्ध के लिए जाता था। सैनिक का कर्त्तव्य घर-त्याग करना था। अतः उसकी पत्नी का कर्त्तव्य उसका उत्साहवर्धन करना था। क्षणिक रूप में उसे अलगाव महसूस होता था, किन्तु उसके सामने राष्ट्रीय कर्त्तव्य होता था। एक सैनिक की पत्नी उसे विदा देना गुणवत्ता और वीरता का कार्य मानती थी। वह पति को उत्साहित करती थी कि युद्धभूमि में भागने की अपेक्षा संग्राम में मर जाना अच्छा है। कठिनाई के समय पत्नी पति की मदद करती थी जब सिंहेन्दु को जंगल में साँप ने काट लिया, तब उसकी पत्नी उसे अपनी पीठ पर ले गई और एक मुनि की मदद से उसकी चिकित्सा की। लक्ष्मण की आठ विद्याधर पत्नियों ने लक्ष्मण के भाग्य में सहभागी बनने हेतु अपने आपको युद्धक्षेत्र के लिए प्रस्तुत कर दिया। स्नेह का बन्धन यह माँग करता है कि पत्नी को पति के प्रति वफादार होना चाहिए। सीता रावण के द्वारा अपहृत होने पर भी उसके साथ विवाह करने को तैयार नहीं हुई। वह राम के लिए मरने को तैयार थी। पति के विरह में उसने भोजन का परित्याग कर दिया। बहुत से राजकीय प्रलोभन उसे विचलित नहीं कर सके। अंजना को पवनञ्जय ने गलतफहमी के कारण विवाह के तत्काल बाद छोड़ दिया, किन्तु उसने अपने पति को कभी नहीं भुलाया। अन्ततः पवनञ्जय को अपनी भूल प्रतीत हुई और उसने अपनी पत्नी को स्वीकार कर लिया। तत्काल अञ्जना पर एक और दुर्भाग्य टूट पड़ा। उसे उसकी सास ने बाहर निकाल दिया, जबकि उसका पति बाहर था। उसे अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ा, किन्तु वह पतिभक्ता रही तथा वह दिन भी आया, जब वह अपने पति से पुनः मिल गई। पति ने उसके इस प्रेम की प्रशंसा की तथा उसे देवी तथा सुन्दरी कहा। वह महिलारत्न के रूप में जानी गई।
किसी की पत्नी को मारना बहुत बड़ा पाप माना जाता था। जब पति राजसिंहासन पर बैठता था तो पत्नी भी साथ में बैठती थी। धार्मिक मामलों में उसका समान रूप से सम्मान होता था। एक बड़े धार्मिक समारोह की व्यवस्था का सारा दायित्व रावण ने मंदोदरी को सौंपा था।