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अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
शिक्षित होती थीं।
माता-पिता अपनी पुत्रियों का विवाह सही पुरुषों से करने का ध्यान रखते थे। वे अच्छे से अच्छा वर तलाशते थे। एक लड़की के भविष्य की प्रसन्नता इस बात पर निर्भर है कि उसे वर कैसा मिला? अतः माता-पिता वर का कुल, चरित्र, स्वास्थ्य तथा उपलब्धियों पर विचार करते हैं। परिपक्वता तथा पूरी जवानी विवाह के लिए उचित योग्यतायें थीं। पुत्री की इच्छाओं का विवाह हेतु ध्यान रखा जाता था। जो व्यक्ति जबरदस्ती किसी लड़की से विवाह करना चाहते थे, माता-पिता उसका अत्यधिक विरोध करते थे। प्राचीन काल में असुर और राक्षस विवाह भी होते थे, किन्तु उन्हें समाज में अच्छा नहीं समझा जाता था। कन्या का अपहरण करने के बाद उसे दासता के गर्त में नहीं धकेला जाता था। श्रीवर्द्धित ने श्रीकान्त की पुत्री का अपहरण किया तथा उससे विवाह कर लिया। खरदूषण ने चन्द्रनखा का अपहरण कर उससे विवाह कर लिया। उसने उसे वही सम्मान दिया, जो एक पत्नी आशा करती थी। प्रायः कन्याओं की शादी प्रसन्नतादायक थी। पउमचरिउ में कोई भी ऐसा मामला नहीं है, जहाँ माता-पिता ने अपनी पुत्री का विवाह उसकी इच्छा के विपरीत किया है या विवाह के बाद पति-पत्नी के बीच लड़ाई होकर तलाक हो गया
पत्नी घरेलू कार्यों की स्वामिनी थी, वह पति की साथिन थी। पति उसका भरण पोषण करता था, अतः भार्या कहलाती थी। पति का अर्थ पत्नी का संरक्षक है। भर्त्ता का अर्थ भरण पोषण करने वाला है। ये शब्द यह निर्देश करते हैं कि पत्नी तथा पति एक दूसरे के पूरक थे। दोनों का उत्तरदायित्व समान था। यह आवश्यक था कि पति पत्नी को समुचित सम्मान दे। जब विभीषण की पत्नी ने राम से आतिथ्य ग्रहण करने की प्रार्थना की तो विभीषण ने राम को ले जाकर उसकी सहमति प्रदान की। __पारिवारिक मामलों में पत्नी का समान अधिकार था। कैकेयी ने जब भरत का विवाह सुभद्रा से करना चाहा तो दशरथ ने तत्काल उसके निर्णय पर सहमति व्यक्त की। रावण अपनी बहिन के अपहर्ता खरदूषण को मारना चाहता था, किन्तु मंदोदरी ने ऐसा करने से मना कर दिया। पत्नी को प्रिया, कान्ता और वल्लभा भी कहा जाता था, जिससे निर्दिष्ट होता है कि उसे पति से प्रेम और लगाव प्राप्त था। पति का कर्त्तव्य केवल पत्नी का भरण पोषण करना ही नहीं था, अपितु उसे प्रसन्न रखना भी था। कठिनाई के क्षणों में वह पत्नी से सहानुभूति रखता था। पति गर्भिणी की इच्छा (दोहद) को पूरा करता था। राम ने सीता की प्रार्थना पर उसके साथ जलक्रीड़ा की। प्रेम का बन्धन इतना गहरा था कि पति को पत्नी की सुरक्षा करनी पड़ती थी और उसे प्रसन्न रखना होता था। जब सीता का अपहरण हुआ तो राम उसके वियोग में अत्यधिक दु:खी हुए। राम ने सुग्रीव की पत्नी की पुनः स्थापना हेतु कठिन परिश्रम किया। यद्यपि राम के अन्त:पुर में बहुत सी स्त्रियाँ थीं, किन्तु सीता के बिना उन्होंने प्रसन्नता का अनुभव नहीं किया। उसने रावण द्वारा प्रस्तावित समस्त भूमि और धन को नकार दिया। उन्होंने तभी प्रसन्नता का अनुभव किया, जब उन्हें उनकी पत्नी मिल गई। सीता की पुनः प्राप्ति हेतु झेली गई समस्त कठिनाईयों और दुःखों को